कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, परन्तु क्यों?

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, परन्तु क्यों?

'वन हिमालय' के सर्व पाठकों और मित्रों को सादर नमस्कार और कार्तिक पूर्णिमा /त्रिपुरी पूर्णिमा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें! आज सनातन धारा से निकली प्रेम -भाईचारा, साहस और सेवा से भरे पंथ सिक्ख पंथ के विचारक एवं संस्थापक गुरु नानक जी की जयंती भी है। सभी सिक्ख भाईयों - बहिनों और सिक्ख पंथ के अनुयाईयों को भी सादर वंदन और श्री गुरु नानक जयंती की हार्दिक शुभकामनायें!

दोस्तों : तो अब आते हैँ मूल विषय पर। आज इस ब्लॉग में मैं आपके साथ एक नई सनातन की जानकारी के साथ उपस्थित हुआ हूँ। और वह यह है कि 'कार्तिक पूर्णिमा' को 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी क्यों पुकारा जाता है।

आज के इस मेरे ब्लॉगपोस्ट से आप तीन विषयों से अवगत हो जायेंगे।

  • कार्तिक पूर्णिमा /त्रिपुरी पूर्णिमा का महत्व।
  • कार्तिक पूर्णिमा /त्रिपुरी पूर्णिमा पर क्या करें और क्या नहीं करें।
  • कार्तिक पूर्णिमा /त्रिपुरी पूर्णिमा के अचूक मंत्र और दोहे।

तो आइये बिना समय गंवाये इसपर दृष्टि डालते हैँ। परन्तु सबसे पहले यह जान लें कि कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा क्यों कहा जाता है।

भगवान शंकर को अनेकों नामों से पुकारा जाता है। उनके एक एक नाम पर पूजा एवं तीर्थ स्थल व पूजा स्थल खडे हैँ। इन पूजा स्थलों में श्रृद्धालुओं का अम्बार लगा रहता है। आदि पुरुष शंकर जी का ऐसा ही एक पवित्र नाम त्रिपुरारी भी है।

रामचरित मानस में एक दोहा है :-

जो तप करे कुमारी तुम्हारी , भावी मेटी सकही त्रिपुरारी |"

(जीवन में ग्रहों या प्रारब्ध के कारण यदि कष्ट आते हों तो इसका दोहा जप अत्यंत फलदायी माना गया है। विद्वत पंडितजन इस दोहे को चारों वेला पर कम से कम १०८ बार जपने पर भाग्य का चक्र बदलने का भरोसा देते हैँ।)

मेरी और आपकी चर्चा विषयवस्तु यह थी कि कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा क्यों कथन किया जाता है। कथा इस प्रकार से है कि भगवान शंकर ने को त्रिपुरासुर नामक असुर का अंत कार्तिक पूर्णिमा दिवस पर किया था जिस कारण उन्हें त्रिपुरारी भी कहा जाता है।

महादेव शिव को त्रिपुरारी कहलाने वाली कथा 

प्रजापति कश्यप और दिति के ज्येष्ठ पुत्र वज्राँग के एक प्रपौत्र हुए तारकासुर । तारकासुर के तीन पुत्र हुए तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष। कहा जाता हैं कि अपने पिता की वध मृत्यु उपरांत इन तीनों ने ब्रह्मा जी की तपस्या से अपने-2 लिए अद्भुत और अबेध्य वरदान मांगे। तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष ने अपने लिए स्वर्ण, चांदी और लौह  से निर्मित तीन अदृश्य एवं आकाश में तैरने वाले पुर (नगर) मांगे। एवं साथ में यह वरदान भी मांग लिया कि यह तीनों नगर केवल... नक्षत्र में हजारों वर्षो में एक पंक्ति में आएंगे। वरदान का अंतिम चरण था कि जब उनके ईष्ट आराध्य देव भगवान शिव स्वयं अपने हाथों से धनुष पर प्रत्यँचा चढ़ाकर केवल एक ही बाण से इन तीनों पुरों को नष्ट करेंगे तब उनका वध होगा। वर्णन आता है कि यह वरदान प्राप्त कर वह स्वयं को अजय व अमर समझने लगे। उनके कृत्य से देव लोकों में निवास करने वाले देवताओं से लेकर मनुष्य लोक में मनुष्यों तक में अस्तित्व का संकट पैदा हो गया था। अनेकों युग उपरांत जब शक्ति मद में चूर त्रिपुर अभिष्ट हो गए तो देवताओं की अनुनय विनय उपरांत भगवान शिव ने अपने पुत्र कार्तिकेय को साथ लेकर धनुष पर प्रत्यँचा चढ़ाकर एक ही बाण से त्रिपुर स्वाहा कर डाले थे। तभी से भगवान शिव त्रिपुरारी भी कहलाये। परन्तु यहाँ पर एक बात दृष्टि डालने वाली यह भी हैं कि तारकासुर के तीनों पुत्रों के पुरों में अपने ईष्ट देव महादेव शिव का पूजन होता था। ठीक वैसे ही जैसे रामायण काल में रावण की लंका में शिव पुजे जाते थे। इसलिए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं कहलाएगी कि वास्तव में भगवान शिव तो पहले से ही इन तीनों पुरों के ईष्ट देव के रुप में त्रिपुरारी थे।

इस कथा में एक बडी सीख निहित हैं। स्वर्ण, चांदी अथवा लौह अथवा अन्य किसी भी धातु की प्राप्ति से जो परा शक्ति (Material Power) अर्जित की जाती व उसका उपयोग अनिष्ट का कारक बनता है तो स्वयं भगवान अपने ही हाथों से उसको नष्ट कर डालते हैँ। फिर चाहे वह रावण की लंका में भक्त हनुमान बनकर लंका दहन करना रहा हो या फिर त्रिपुर को एक बाण से ध्वस्त करना रहा हो।

आदि पुरुष महादेव के अनन्य भक्त कार्तिक पूर्णिमा का प्रयोग 'अग्निष्टोम यज्ञ' हेतु करते हैँ। अग्निष्टोम यज्ञ' सम्पन्न करने हेतु 'वृष (बछड़ा) दान' का विधान है। वह इस कठोर यज्ञ अनुष्ठान द्वारा शिव कृपा से शिव पद प्राप्त तक प्राप्त कर पाते हैँ, ऐसा माना जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा से संबंधित अलौकिक रहस्य।

🪔 कार्तिक पूर्णिमा का दिन सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए पवित्रतम इसलिए कहा गया है क्यूंकि इस दिन श्री भगवान विष्णु जी ने 'मत्स्य अवतार' लिया था। पुराण शास्त्र बताते हैँ कि प्रलय काल में शास्त्रों और वेदों की रक्षा हेतु श्री भगवान विष्णु जी ने यह अवतार ग्रहण किया था। आधुनिक विज्ञान शास्त्री इस घटना को Evolution Theory से जोड़कर देखते हैँ।

🪔 कार्तिक पूर्णिमा में गंगा स्नान का विशेष महत्व माना गया है। महाभारत के युद्ध उपरांत श्री भगवान कृष्ण सभी पांडवों को माँ गंगा के तट पर गढ़ खादर नामक स्थान पर लेकर आये. वहाँ सभी पांडवो ने स्नान ध्यान किया और कार्तिक शुक्ल अष्टमी से लेकर कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी (बैकुंठ चतुर्दशी) तक महाभारत में मारे गए सभी बंधु बांधवों एवं युद्ध वीरों हेतु पूजन हवन किया। तदुपरान्त पांडवो ने भाई युधिष्ठिर की अगुवाई में कार्तिक पूर्णिमा को शांति जप हवन आदि पूर्ण करके गंगा में स्नान एवं दीपदान आदि किया। तभी से इस दिवस पर पवित्र गंगा स्नान को श्री भगवान कृष्ण द्वारा निर्दिष्ट ब्रह्म अनुष्ठान मान लिया गया।

🪔 आदि पुरुष शिव भक्त कार्तिक पूर्णिमा का प्रयोग अग्निष्टोम यज्ञ सम्पन्न करके उसके द्वारा शिव पद प्राप्त करने हेतु भी करते हैँ।

🪔 वैष्णव मत में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व इसलिए भी है कि इस दिन माँ तुलसी पृथ्वी पर अवतरित हुई थी।

🪔 अनन्त ब्रह्माण्ड में पवित्रतम गौ लोक धाम में श्री भगवान कृष्ण श्री राधा वृन्दावनेश्वेरी का सेवा पूजन करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा को सभी वैष्णव भक्त तुलसी पूजन, श्री राधाकृष्ण पूजन को विधि विधान से सम्पन्न करते हैँ।

🪔 सनातन धारा से निकले सिक्ख पंथ का अनुसरण करने वाले सिक्ख बंधु कार्तिक पूर्णिमा दिवस को 'प्रकाशोत्स्व पर्व' के रुप में मनाते हैँ। सिक्ख पंथ के संस्थापक प्रथम गुरु श्री गुरुनानक देव जी का अविर्भाव कार्तिक पूर्णिमा को ही हुआ था। उनकी जयंती को श्री गुरुनानक जयंती, गुरु पर्व, प्रकाशोत्स्व पर्व आदि नामों से पुकारा जाता है।

🪔 कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र दिन कृतिका में आदि पुरुष शिव जी के दर्शन प्राप्त होते हैँ। उनके दर्शन मात्र करने से व्यक्ति सप्तजन्मी विद्वता एवं ऐशर्व्य प्राप्त कर लेता है।

🪔 कार्तिक पूर्णिमा का विधान है कि आकाश में उदित चंन्द्रोदय के समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन किया जाए। इस पूजन अनुष्ठान क्रिया से आदि पुरुष की महाकृपा बरस पड़ती है।

🪔 भारत के दक्षिण प्रान्त में कार्तिक पूर्णिमा को भक्तजन 13 किलोमीटर की अरुणाचलम पर्वत की परिक्रमा पूर्ण करते हैँ। अरुणाचलम पर्वत वह पवित्र आश्रम है जहाँ पर आदि पुरुष के पुत्र कार्तिकेय जी ने स्कन्द पुराण की रचना की थी।

चुंकि आज का विषय मूलतः 'कार्तिक पूर्णिमा' ही है अत्एव आपकी विस्तृत जानकारी हेतु मैं भविष्य में स्कन्द पुराण पर विस्तृत आलेख प्रस्तुत करके बात करुंगा। फिर भी आप सबकी जानकारी हेतु यह जान लेना अत्यंत आवश्यक होगा कि लौकिक और पारलौकिक ज्ञान के अनन्त उपदेश 'स्कन्द पुराण' में भरे पड़े हुए हैं। धर्म, सदाचार, योग, ज्ञान तथा भक्ति का सुन्दर विवेचन 'स्कन्द पुराण' में वर्णित है। जैसे कि निम्न वर्णित तथ्य को ले लें। 

श्री कार्तिकेय स्वामी जी द्वारा रचित 'स्कन्द पुराण' में निहित हैँ अलौकिक सीखें, उदाहरणत: यह श्लोक ले लें :-

स्कन्द पुराण के माहेश्वरखण्ड के कौमारिकाखण्ड के अध्याय 23 में एक कन्या के पालन के फल को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है। श्लोक इस प्रकार से है 👉🏻 "दशपुत्रसमा कन्या दशपुत्रान्प्रवर्द्धयन्। यत्फलं लभते मर्त्यस्तल्लभ्यं कन्ययैकया॥" (23.46) अर्थात एक पुत्री के पालन पोषण का पुण्य दस पुत्रों के समान प्राप्त होता है। कोई व्यक्ति दस पुत्रों के लालन-पालन से जो फल प्राप्त करता है वही फल वह मात्र एक कन्या के लालन-पोषण से प्राप्त कर लेता है।

आध्यात्मिक गुरु श्री रामानुज जी ने कथन किया है "न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्। न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गंगा समम्।।" इस श्लोक का तात्पर्य है कि 'कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सत्ययुग के समान कोई युग नही, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगा जी के समान कोई तीर्थ नहीं है'। इसी प्रकार से स्कंद पुराण में एक श्लोक कथन है 👉🏻 मासानां कार्तिक: श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन। तीर्थं नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।। (स्कंद पुराण, वै. खं. कां. मा. 1/14) इसका तात्पर्य है कि जिस प्रकार से श्री भगवान विष्णु एवं सर्व विष्णु तीर्थ श्रेष्ठ हैँ उसी प्रकार से कार्तिक मास भी श्रेष्ठ और दुर्लभ मास है। स्कंद पुराण का एक अन्य श्लोक बताता है कि कार्तिक मास में पवित्र गंगा जी अथवा अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से रोग कट जाते हैँ, और सद्बुद्धि प्राप्ति के साथ देवी लक्ष्मी जी की साधना द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्त होता है। श्लोक इस प्रकार से है 👉🏻 रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्। मुक्तेर्निदांन नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।।

जल सन्नीद्धि मंत्र 👉🏻 गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति । नर्मदे सिन्धु कावेरि जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

अर्थात - "मैं गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी नदियों के दिव्य-जल को पधारने हेतु आह्वान करता/करती हूं।"

स्नान करते समय वाचन मंत्र 👉🏻 आपस्त्वमसि देवेश ज्योतिषां पतिरेव च। पापं नाशाय मे देव वामन: कर्मभि: कृतम।

ईश्वर ध्यान अराधना मंत्र 👉🏻 दु:खदरिद्रयनाषाय श्रीविश्णोस्तोशणाय च।प्रात:स्नान करोम्यद्य माघे पापविनाषनम।।

स्नान उपरांत मंत्र वाचन 👉🏻 सवित्रे प्रसवित्रे च परं धाम जले मम।त्वत्तेजसा परिभ्रश्टं पापं यातु सहस्त्रधा।।

कार्तिक पूर्णिमा पर क्या करें व क्या नहीं करें :-

👉🏻 पवित्र स्नान, जप, ध्यान, व्रत, मौन व्रत, यज्ञ -अनुष्ठान, दान, दीपदान, अन्न दान, वस्त्र दान कार्तिक पूर्णिमा को किये जाने वाले उपाय हैँ।

👉🏻 तामसिक आहार-व्यवहार का पूर्ण परित्याग करना चाहिए।

👉🏻 ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन किया जाना चाहिए।

👉🏻 सभ्य एवं नियंत्रित भाषा का उपयोग करना चाहिए और काम-क्रोध व लोभ का परित्याग करना चाहिए।

👉🏻 घर को गृहकलेश से मुक्त रखना चाहिए।

💐🙏🏻💐🕉️ हरे कृष्ण!

आप सभी को पवित्र कार्तिक पूर्णिमा / त्रिपुरारी आदि पर्व दिवस / त्रिपुरा सुंदरी माता आदि महाशक्ति पीठ अनुष्ठान दिवस / अरुणाचलम परिक्रमा दिवस / गुरुनानक जयंती / प्रकाशोत्स्व पर्व /गुरु पर्व  की हार्दिक बधाई एवं असीम शुभकामनायें! महाप्रभु सभी पर असीम कृपा बरसाएँ सद्बुद्धि प्रदान करें और अनिष्ट व पाप का हरण करें। - भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास ("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)

भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास
("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)
सम्पर्क सूत्र :-
9756201936 अथवा 9412145589
ईमेल :-
UKRajyaNirmanSenaniSangh@gmail.com

💐 हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। 💐

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