सनातन शास्त्रों मे वर्णित कथाओं के गूढ प्रबंधकीय सिद्धांत (श्रृंखला एक)

सनातन शास्त्रों मे वर्णित कथाओं के गूढ प्रबंधकीय सिद्धांत श्रृंखला एक अंतर्गत।

विघ्न विनाशक की कथा से उद्वित आज का गूढ प्रबंधकीय सिद्धांत।



सनातन शास्त्रों मे वर्णित कथाओं के गूढ प्रबंधकीय सिद्धांत श्रृंखला एक अंतर्गत।

आलेख रचियता :-
भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास
("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)

पाठक मित्रों एवं मेरे प्रिय शिष्यों: क्या आप इस बात से परिचित हैँ कि सनातन पूजन विधि मे सभी देवी-देवताओं के पूजन से पूर्व श्री गणेश पूजन के पीछे का अत्यंत गुप्त प्रबंधकीय सिद्धांत क्या है? यदि नहीं तो आइये आज इसके एक गूढ सिद्धांत पर हम सब नजर डालते हैँ। परन्तु सबसे पहले इसकी उस उपयोगिता को गृहण कर अपने भीतर आत्मसात कर लें कि यह हमारे लिए क्यों आवश्यक है।

श्रीमदभागवदगीता में भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त व सखा श्री अर्जुन जी को उपदेश देते हुए कथन करते हैँ

अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम्।

एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोन्यथा।।

श्रीमदभागवदगीता मे वर्णित इस गूढ श्लोक द्वारा मनुष्य जाति के लिए उनके जीवन मे आध्यात्मिक और तत्व ज्ञान के महत्व को उजागर किया गया है। श्लोक मे वर्णित है कि प्रत्येक मनुष्य को अध्यातम व तत्व ज्ञान का दर्शन अवश्य होना चाहिए अन्यता समूचे विश्व मे व्याप्त ज्ञान केवल अविद्या मात्र ही है। जैसे कि शक्ति देवताओं को भी प्राप्त होती है एवं असुरों को भी परन्तु शक्ति का सही उपयोग करना उन्हें आध्यात्मिक व तत्व ज्ञान होने से ही आ पाता है। उदाहरण के लिए एक असुर प्रवृति के लिए सुरा (liquor) भौतिक उपभोग नशा करने मात्र का साधन है जबकि एक गुणी चिकित्सक उसका सही प्रयोग किसी की चोट को ठीक करने की समझ से करेगा। अध्यात्म और तत्व की समझ हम सब में यह ज्ञानशीलता अच्छी तरह से विकसित करती है कि हम शक्ति को प्राप्त करने के साथ साथ शक्ति का सही उपयोग भी कर पाएं। चलिए आगे बढ़ते हैँ।

आज के भौतिकतावादी युग जिसका नाम "कलियुग" है में तर्क-वितर्क सिद्धांत से अध्यात्म और तत्व ज्ञान की महत्ता को पहचाना व स्वीकारा जाता है। आज की पीढ़ी प्रत्येक आध्यात्मिक अथवा धार्मिक क्रिया के पीछे छुपे गुप्त सिद्धांत को समझना चाहती है। और यह सुन्दर भी है इससे उनकी समझ मे वह पैनापन आने की संभावना बनती है जो एक दक्ष गुरु अपने शिष्य के भीतर उपजाना चाहता है। ठीक वैसे ही जैसे कि द्रोणाचार्य अर्जुन के भीतर और चाणक्य चन्द्रगुप्त के भीतर ज्ञान व दक्षता प्रवाहित करना चाहते थे। सनातन धारा में ज्ञान विज्ञान और प्रबंध दर्शन के ऐसे गूढ रहस्य निहित हैँ, जिनका यदि सही मायने में अनुसरण किया जाए तो मनुष्य के पृथ्वी पर जन्म का मनोरथ सरलता से पूर्ण हो जाए। आइये एक अद्भुत कथा द्वारा आज इसके असंख्य गूढ रहस्यों मे से एक को जानते हैँ।

कौन हैँ श्रेष्ठ?

श्री गणेश जी के साथ उनकी विवेकशीलता का परिचय देती एक बहुत ही रोचक कथा जुडी हुई है। कथा यह है कि एक बार श्री गणेश जी एवं उनके प्रिय भाई श्री कार्तिकेय जी के मध्य उनमें निहित शक्तियों को लेकर बालपन संवाद छिड़ गया। उनके पिता आदि पुरुष श्री शिव जी एवं शक्ति स्वरूपा माँ पार्वती जी उनके संवाद को बड़े ही आतुरता से सुनने व आनंद लेने लगे। दोनों के बीच संवाद भले ही बालपन का था परन्तु उस संवाद का प्रत्येक शब्द तर्क पर प्रस्फुटित हो रहे थे। दोनों भाईयों की बौद्धिक श्रेष्ठता की परख करना ऐसे मे असम्भव सा प्रतीत हो रहा था। निष्कर्ष के आभाव मे दोनों भाई माता पार्वती एवं पिता शिव से निर्णय मांगने लग गए। किसी भी माता पिता के लिए अपने पुत्र पुत्रियां अत्यंत प्रिय होते हैँ। फिर यह तो आदि पुरुष और आदि शक्ति थे, जो प्रत्येक मे तत्व विधमान रहते हैँ। उन्होंने दोनों भाईयों को एक क्रिया द्वारा विजयी घोषित करने का निर्णय सुनाया। दोनों भाईयों को कहा गया कि जो भी भाई सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड का पूर्ण चक्कर लगाकर प्रथम आएगा वह स्वतः विजेता सिद्ध हो जायेगा।

माता पिता का निर्णय सुनते ही विजय प्राप्ति हेतु श्री कार्तिकेय जी ब्राह्मण्ड यात्रा पर चक्कर लगाने हेतु निकल पड़े। परन्तु यह क्या श्री गणेश जी उसी स्थान पर बने रहें। वह उठे व अपनी मुष्क सवारी पर माता शक्ति एवं पिता शिव का का हाथ जोड़कर स्त्रोतम जपते हुए परिक्रमा करने लगे। उनके प्रिय अनुज श्री कार्तिकेय जी उधर सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड मे व्याप्त सर्व सौर मंडलों, उलकाओं, स्वर्ग - नरक समेत सर्व देव समेत असुर लोकों तक भ्रमण करते हुए सर्वत्र यह देख रहें थे कि माँ शक्ति पिता शिव ही प्रत्येक लोक मे विराजमान हैँ।

आखिरकार वह ब्रह्मण्ड का एक पूर्ण चक्कर लगाकर अपने माता पिता व उनकी परिक्रमा स्त्रोतम गान करते श्री गणेश जी के पास पहुँच गए। जब तक श्री कार्तिकेय जी वापस पहुंचे तब तक श्री गणेश जी स्त्रोतम गान करते अब तक असंख्य परिक्रमाएँ माँ शक्ति तथा पिता शिव के लगा चुके थे।

कौन था श्रेष्ठ और क्या थी सीख?

समय का उपयोग ज्ञान उपयोग हेतु अथवा ज्ञान अनुभव प्राप्ति हेतु:-

दोनों भाईयों मे कौन विजयी हुआ अब यह निर्णय किया जाना था। निर्णय इस रुप मे कठिन था कि जहाँ एक ओर श्री गणेश जी सर्व ब्राह्मण्ड मे सर्वत्र व्याप्त माँ शक्ति एवं पिता शिव का दर्शन करते हुए चक्कर लगा आये थे वहीं श्री गणेश जी भी ब्रह्मण्ड मे सर्वत्र व्याप्त साक्षात् दिव्य शिव -शक्ति के ही चक्कर लगा रहें थे। परन्तु श्री कार्तिकेय अपना अनुभव ग्रहण करके समझ चुके थे कि जहां वह शिव-शक्ति का दर्शन करते हुए ब्रह्मण्ड का एक चक्कर लगाकर आये हैँ वहीं दूसरी ओर उनके प्रिय भाई श्री गणेश जी असंख्य स्त्रोतम गान करते हुए साक्षात् श्री शिव -शक्ति के असंख्य चक्कर लगा चुके हैँ। श्रेष्ठता स्वयं सिद्ध हो चुकी थी।

इस अद्भुत कथा से दो तथ्य निकलकर आते हैँ। किसी मनुष्य को ज्ञान गुण Inborn अर्थात जन्मजात अथवा शिक्षा दर्शन की समझ के द्वारा भी प्राप्त हो सकता है व वही सब Experience अनुभव द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है। श्री गणेश जी व श्री कार्तिकेय जी दोनों ही शिव-शक्ति के पुत्र हैँ इसलिए यह स्वीकारा जाना चाहिए कि दोनों भाईयों की लालना पालना एक समान वातावरण में ही हुई भी होगी। परन्तु परीक्षा घड़ी में श्री कार्तिकेय जी को जो गूढ ज्ञान समूचे ब्रह्मण्ड की परिक्रमा लगाने उपरांत अनुभव द्वारा प्राप्त हुआ था वही गूढ ज्ञान श्री गणेश जी के भीतर प्रारम्भ में ही निहित हो गया था व उन्होंने उस ज्ञान का उपयोग किया था।

परन्तु कथा में इससे भी बडी सीख यह निहित है कि जिस काल खंड में श्री कार्तिकेय जी को समुची परिक्रमा पूर्ण करने के बाद ज्ञान अनुभव की प्राप्ति मात्र हुई थी, वहीं उस काल खंड में निहित ज्ञान द्वारा श्री गणेश जी उसका सर्वाधिक बेहतर उपयोग असंख्य परिक्रमाएँ पूर्ण कर मनोरथ प्राप्त कर चुके थे। सीख यह है कि 'ज्ञान का उपयोग सही समय पर सही तरीके से सही योजन' हेतु करना अधिक महत्वपूर्ण है बजाए कि महत्वपूर्ण समय का उपयोग मात्र ज्ञान अनुभव को प्राप्त करने हेतु में उपयोग हो।

आधुनिक प्रबंधन शास्त्र में एक शिक्षा यह भी दी जाती है कि 'Learn from the Experiences of Others' अर्थात 'दूसरों के अनुभव से सीख ग्रहण करें' करना कहा गया है। यही इतिहास को पढ़ने, जानने व सही समझ विकसित करने का मूल उद्देश्य भी होता है। अर्थात जो गलतियां पूर्व में किसी ने जाने अनजाने में कर दी हो उसके परिणाम का मूल्यांकन कर हम अपनी नीति को अनुपालित करें ताकि परिणाम बेहतर निकलकर सामने आएं।

(क्रमशः श्रृंखला के अगले आलेख में)

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💐🙏🏻💐🕉️ कृपया वृक्ष रोपण, वृक्ष संरक्षण, पर्यावरण संवर्धन हेतु ज्ञान संकल्प धारित करें और एक सुन्दर धरा निर्मित करने की ओर बढ़े। - भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास ("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी), वृक्षाबंधन अभियान के विचारक एवं रचनाकार 🙏🏻
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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
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