ऐसा अद्भुत संत सनातन मे शायद ही पुनः कभी अवतरित हो!

ऐसा अद्भुत संत शायद ही सनातन मे पुनः कभी अवतरित हो!

(70 बरस की उम्र मे बिना धन के विदेश पहुंचकर 10 बरस के भीतर समूचे विश्व मे श्रीमदभागवद ज्ञान गंगा फैला डाली )

💐🙏🏻💐🕉️ हरे कृष्ण!

श्रीमदभागवदगीता जी मे श्री भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त-सखा अर्जुन को श्री गीता ज्ञान विषयगत  बताते हैँ कि "एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः। स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।" योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण प्राप्ति का गूढ ज्ञान राजाओं व ऋषिकुल परम्परा द्वारा प्रवाहित होता था परन्तु समय काल के साथ अधर्मी राजाओं (दुर्योधन इत्यादि जैसे) व ऋषिकुल परम्परा मे व्यवधान के चलते यह अद्भुत विधा लुप्तप्राय सी हो गई थी। कहने का तात्पर्य यह है कि श्रीमदभागवदगीता ज्ञान अर्जुन की पात्रता को देख्ग्ते हुए उसे पुनःस्थापित करने के दृष्टिगत उन्हें श्री भगवान द्वारा द्वापर युग मे प्रदत्त किया जा रहा था।

कलियुग मे श्रीराधाकृष्ण जी के युगल अवतार श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा श्री कृष्ण लीलाओं की खोज कर श्रीकृष्ण भक्ति प्रवाह को दिशा प्रदान कर दी गईं। गुरु परम्परा के अंतर्गत इसका अभिप्रसार निरंतर चलता चला आ रहा था। परन्तु तब एक अद्भुत चमत्कार हुआ। श्री श्रील ए•सी• भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी को भक्तिसिद्धांत ठाकुर सरस्वती प्रभुपाद जी से आदेश प्राप्त हुआ कि वह श्रीकृष्ण भक्ति को मलेछोँ के मध्य भी समप्रवाहित करें ताकि श्रीकृष्ण भक्ति मे रमकर वह भी इस दावानल रूपी संसार से मुक्ति प्राप्त करके चिर स्थाई आनंद को प्राप्त कर सकें। गुरु जी के आदेश पर श्री श्रील प्रभुपाद जी विदेशों मे श्रीकृष्ण भक्ति ज्ञान अभिप्रसार हेतु कार्य करने के लिए निकल पड़े।


वृन्दावन मे श्री श्रील अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जीकी समाधि स्थल जहां वर्षभर लाखों भक्त दर्शनार्थ आते हैँ।
(छाया स्त्रोत (साभार सहित):- विकिपीडिया)

श्री श्रील प्रभुपाद जी अंग्रेजी भाषा लेखन व बोलचाल मे अत्यंत दक्ष थे। उन्होंने ISCKON  (इस्कॉन) की स्थापना कर डाली और श्रीकृष्ण भक्ति ज्ञान गंगा बहाने लगे। देखते ही देखते उन्होंने हजारों लोगों को श्रीकृष्ण भक्ति की कृपा प्रदान कर उनको नशे, अधर्म, पतित मार्ग से बाहर निकाल दिया। उनके अनुयायी दीक्षा प्राप्त कर देश विदेश मे सक्रिय हो चले। बाजारों, गली कूचों मे हरिनाम मंत्र गूंजयीमान होने लगा। श्रीकृष्ण मंदिर स्थापित होने लगे। अक्षयपात्र योजना के अंतर्गत लाखों लोग एक वक्त का मुफ्त भोजन प्रसादम स्वरूप पाने लग गए। गुरुकुल परम्परा पाश्चात्य जगत मे भी पैर पसारने लगी। क्या न्यूयोर्क तो क्या लंदन, क्या ब्रिस्बेन तो क्या मोस्को, क्या एडेलिड तो क्या बिर्जिंग चहुँ ओर श्रीराधाकृष्ण भक्ति मे लोग बाग, परिवार के परिवार लीन होने लगे।

अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी अतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ के संस्थापकाचार्य हैँ। उनका आविर्भाव 01 सितम्बर 1896 को व तिरोभाव  17 नवम्बर 1977 (81 बरस की उम्र मे) हुआ था। श्री श्रील अभ्यचरर्णाविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी का दीक्षा पूर्व नाम अभय चरण डे था। वह बंगाली क्षत्रिय स्वर्णाकार परिवार मे जन्मे थे। प्रभु की लीला ऐसी हुई की उन्हें स्वर्ण आदि ने नहीं बल्कि कृष्ण भक्ति ने अपनी ओर आकर्षित किया था। उन्होंने अपनी गुरु दीक्षा 1933 मे प्राप्त की थी एवं 1959 मे सन्यास लिया था,

सन् 1959 में सन्यास ग्रहण उपरांत उन्होंने वृंदावन में श्रीमदभागवतपुराण के अनेक खंडों का अंग्रेजी में अनुवाद किय था।आरंभिक तीन खंड प्रकाशित करने के बाद सन् 1965 में अपने गुरुदेव के अनुष्ठान को संपन्न करने वे 70 वर्ष की आयु में बिना धन या किसी सहायता के अमेरिका जाने के लिए निकले थे। अमेरिका मे उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (1966) की स्थापना की। तदुप्रान्त उन्होंने सन् 1968 में प्रयोग के तौर पर वर्जीनिया (अमेरिका) की पहाड़ियों में नव-वृन्दावन की स्थापना कर दी थी। दो हज़ार एकड़ के इस समृद्ध कृषि क्षेत्र से प्रभावित होकर उनके शिष्यों ने अन्य जगहों पर भी ऐसे समुदायों की स्थापना के कार्य को गति देना प्रारम्भ कर दिया था। 1972 में टेक्सस के डैलस में गुरुकुल की स्थापना कर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की वैदिक प्रणाली का सूत्रपात भी उनके द्वारा प्रारम्भ कर दिया गया।

श्री श्रील अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी

श्रील प्रभुपाद जी ने श्रीराधाकृष्ण भक्ति के अभिप्रसार हेतु सन 1966 से 1977 के मध्य समूचे विश्वभर का 14 बार भ्रमण किया तथा अनेक विद्वानों से कृष्णभक्ति के विषय में वार्तालाप करके उन्हें यह समझाया की कैसे कृष्णभावना ही जीव की वास्तविक भावना है। उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक पुस्तकों की प्रकाशन संस्था- भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट- की स्थापना भी की। कृष्णभावना के वैज्ञानिक आधार को स्थापित करने के लिए उन्होंने भक्तिवेदांत इंस्टिट्यूट की भी स्थापना की।


भक्तिवेदांत स्वामी का तिरोभाव 17 नवंबर को श्रीमदभागवद गीता श्रवण करते करते हुआ। वृन्दावन में स्वामी प्रभुपाद की समाधि मे आज भी लाखों भक्त उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने पहुँचते हैँ।

💐उनके तिरोभाव दिवस पर उन्हें शत शत नमन एवं भावभीनी श्री कृष्णभावनाअमृत श्रद्धांजलि!💐


💐🙏🏻💐🕉️ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम हरे हरे।।

इस आलेख के रचयिता हैँ भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास ("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)

भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास
("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)

सम्पर्क सूत्र :-
मोबाइल :- 9756201936 अथवा 9412145589
ईमेल :- UKRajyaNirmanSenaniSangh@gmail.com

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