देवभूमि गढ़वाल कुमाऊँ का इगास पर्व क्यों कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी को ही मनाई जाती है?
उत्तराखंडी अवाम परम्पराओं से घिरी रहती है। उनका जीवन विशुद्ध सादगी और ईश्वरीय प्रेम प्रदत्त है। छाया चित्र में उत्तराखंड की घसियारियां परम्परागत प्रतियोगिता में भागीदारी करती हुई।
क्या है "इगास" पर्व?
देवभूमि उत्तराखंड में एक महत्वपूर्ण पर्व का नाम है "इगास" पर्व। इस दिन उत्तराखंड खासकर गढ़वाल कुमाऊं मंडल में "इगास" खूब धूमधाम से मनाई जाती है। लोग उत्सव में नाचते गाते हैँ, घरों में दीप प्रज्ज्वलन करते हैँ, भैलो खेलते हैँ और सांयकाल विशेष स्वादिष्ट पहाड़ी व्यंजनों का आनंद लेते हैँ। उत्तराखंड में "इगास" पर्व अमावस्या तिथि से ठीक 11वें दिवस को एकादशी के दिन मनाया जाता है। जहाँ मैदानों में मनाई जाने वाली दीवाली कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को पड़ती हैं वहीं पहाड़ों में इसे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाने की पौराणिक परम्परा है।
इगास में भैलो खेलने की हैं अद्भुत परम्परा
"इगास" के दिन भैलो खेली जाती है जिसमें एक मजबूत रस्सी को चुटियादार तरीके से तैयार किया जाता है। इसके एक छोर पर 'कुलयों की डाली" (सूखे हुए चीड़ के पेड के छोटे छोटे दो -ढाई फुट के लकड़ी के टुकड़े बांध दिए जाते हैँ। उन्हें अनुष्ठान / पूजा उपरांत अग्नि प्रवाहित कर लोग घुमा घुमाकर नाचते हैं। भैलो खेलने व नाचने वाला स्थान एक खुले मैदान में सार्वजनिक स्थान अथवा बंजर खेत मैदान होता हैं। "भैलो" केवल दक्ष व्यक्ति ही निर्मित करता हैं ताकि किसी भी अवस्था में अग्नि दुर्घटना ना हो।
इगास को बूढ़ी दिवाली भी कहा जाता है
"इगास" को बूढ़ी दिवाली भी पुकारा जाता हैं। माना जाता हैं कि जब प्रभु राम जनक नंदिनी माँ सीता व छोटे भाई लक्ष्मण एवं हनुमान जी संग पुनः अयोध्या को लौटकर आये थे उसका समाचार देवभूमि में निवास करने वाले साधु संतों, तपवसियों, वनवासियों तक दुर्गम क्षेत्र होने के कारण देर से पहुंची थी। समाचार प्राप्त होते ही कैलाशपति और माँ नंदा की भूमि हिमालय की वादियों में अभूतपूर्व उमंग व उत्सव के साथ तब "इगास" मनाई गईं व पवित्र अग्नि के साथ भैलो खेली गईं थी।
श्रद्धांलुओं को विशेष पहाड़ी पकवान खिलाये जाने की भी परम्परा है। छायाचित्र में ऐसे अयोजन अवसरों का एक चित्रण।
गढ़वाल के वीर माधो सिँह भंडारी की विजय गाथा से भी जुडा है "इगास" पर्व
उत्तराखंड के वीर माधो सिंह भंडारी की विजयगाथा से भी जुडा है "इगास" पर्व। ऐसा माना जाता है कि गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट और तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी और दिवाली के ठीक 11वें दिन उनकी विजेता गढ़वाली सेना अपने घर पहुंची थी। उनके स्वागत सत्कार में दीवाली जैसा उत्सव "भैलो" खेलकर मनाया गया था।
क्या है एकादशी से जुडा "इगास" व "भैलो" का महत्वपूर्ण रहस्य?
उत्तराखंड में "इगास" का पर्व वस्तुतः कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाने का विधान है। इस एकादशी को "हरिप्रबोधिनी एकादशी" भी कथन किया जाता है व इस दिवस संत महात्मा व भक्त जन "हरिप्रबोधिनी एकादशी व्रत" भी रखते हैँ। यह दिवस तुलसी विवाह दिवस की पवित्रता की भी विशेष मान्यता लिए हुए होता है। इस दिवस से भीष्म पंचक प्रारंभ होता है व चातुर्मास्य व्रत-नियम भी समाप्त होते हैँ। जिससे "इगास" को मनाने, शुभ मांगलिक कार्य सम्पादन हेतु, व "भैलो" खेलकर इसे मनाया जाता है।
💐🙏🏻💐🕉️
आप सभी को सकुटुंब, सपरिवार "इगास पर्व" एवं "हरिप्रबोधिनी एकादशी" व्रत, तुलसी विवाह दिवस एवं "भैलो खेलो दिवस" की हार्दिक बधाई एवं असीम शुभकामनायें! - भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास ("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी) 🙏🏻
भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)
सम्पर्क सूत्र :-
मोबाइल :- 9756201936 अथवा 9412145589
ईमेल :- UKRajyaNirmanSenaniSangh@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें