छुपी बात : 1934 में संविधान सभा गठन का विचार प्रदत्त करने वाले एम.एन. राव का था एक गहरा देहरादून कनेक्शन।

भारत की संविधान सभा की एक बैठक 

भारत की संविधान सभा से जुड़े रोचक तथ्य।

  • सन 1934 में सर्वप्रथम एम.एन. रॉय द्वारा संविधान सभा (Constituent Assembly) गठित करने का सुझाव रखा गया था।
  • श्री एम.एन. रॉय के विचार को सन 1935 में कांग्रेस पार्टी ने स्वीकारते हुए इसके हेतु विधिवत रुप में मांग उठाई।
  • ब्रितानी सरकार ने इस मांग को स्वीकार करते हुए 1940 के अगस्त माह में प्रस्ताव पेश किया था।
  • सन 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत 'संविधान सभा' गठन हेतु चुनाव कराए गए।
  • एकल मत द्वारा 'संविधान सभा' के सदस्य चुने गए जिनका कार्य था कि वह स्वतंत्र भारत हेतु संविधान का ड्राफ्ट तैयार करें।
  • संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र भारत हेतु संविधान तैयार करने हेतु कुल 389 सदस्य चुन लिए गए थे।
  • पाकिस्तान के गठन के उपरांत संविधान सभा में कुल 289 सदस्य ही रह गए थे। इनमें से 229 सदस्य ब्रितानी सरकार के अंतर्गत प्रांतों की असेंबली से चुनकर आये हुए थे एवं 70 सदस्य द्वारा मनोनीत किये गए थे।
  • डॉ सचिदानंद सिन्हा इसके प्रथम अंतरिम अध्यक्ष (Adhoc President) रहे थे।
  • डॉ राजेंद्र प्रसाद जब अध्यक्ष चुन लिए गए तो वह इसके स्थाई अध्यक्ष बने।
  • श्री हरेंद्र कूमर मुखर्जी इसके उपाध्यक्ष बने व श्री बेनेगल नृसिंह राऊ सलाहकार नियुक्त हुए।
  • संविधान सभा की प्रथम बैठक 09 दिसम्बर 1946 को हुई।
  • मुस्लिम लीग ने संविधान सभा बैठक का बहिष्कार किया था क्योंकि वह पाकिस्तान बनाने की अपनी मांग पर बनी हुई थी।
  • पं0 जवाहरलाल नेहरू जी ने सविधान सभा में 13 दिसम्बर 1946 को संविधान उद्देशिका प्रस्ताव (Constitutional Objective Resolution) सदन पटल पर रखा था।
  • पं0 जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान उद्देशिका प्रस्ताव (Constitutional Objective Resolution) को संविधान सभा द्वारा 22 जनवरी 1947 को स्वीकार व पारित कर दिया था।
  • संविधान सभा द्वारा पारित संविधान उद्देशिका प्रस्ताव (Constitutional Objective Resolution) संविधान का Preamble of the Constitution कहलाया।
  • संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त 1947 को किया गया था।
  • समिति में सात सदस्य शामिल थे।
  • प्रारूप समिति का विचार आयरलैंड से लिया गया था।
  • डॉ भीमराव अम्बेडकर इस समिति के अध्यक्ष थे। उन्हें "भारत के 29 अगस्त 1947 के पिता" के रूप में भी जाना जाता है।
  • प्रारूप समिति के अन्य सदस्य एन गोपालस्वामी, अल्लादी कृष्णस्वामी, डॉ के एम मुंशी, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, एन माधव राऊ, टी टी कृष्णमाचारी थे।
  • प्रारूप समिति पर प्रस्ताव 26 नवंबर, 1949 को पारित किया गया था, और इसमें सदस्यों के हस्ताक्षर (299 में से 284 सदस्य) और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर प्राप्त हुए।
  • संविधान 26 नवंबर, 1949 को अपनाया गया था, जिसमें प्रस्तावना, 395 लेख और 8 अनुसूचियां शामिल थीं।
  • प्रारूप समिति और अन्य सात प्रमुख समितियों को भारत की संविधान सभा द्वारा नियुक्त किया गया था।
  • भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से तैयार करने में 02 वर्ष, 11 माह, 18 दिन का समय लगा था।
  • 26 जनवरी 1950 को संविधान को लागू किया गया।

संविधान सभा की महत्वपूर्ण संयोजन:

  • सच्चिदानंद सिन्हा - अंतरिम अध्यक्ष
  • डॉ. राजेंद्र प्रसाद - अध्यक्ष
  • हरेन्द्र कुमार मुखर्जी - उपाध्यक्ष
  • बीएन राव - संवैधानिक सलाहकार
  • संविधान सभा की महत्वपूर्ण समितियाँ:
  • प्रारूप समिति - डॉ. बी आर अम्बेडकर
  • केंद्रीय संविधान समिति - जवाहरलाल नेहरू
  • संघ शक्ति समिति - जवाहरलाल नेहरू
  • राज्य समिति - जवाहरलाल नेहरू
  • संचालन समिति - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
  • प्रक्रिया समिति के नियम - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
  • प्रांतीय संविधान समिति - सरदार वल्लभभाई पटेल
संविधान उद्देशिका प्रस्ताव (Constitutional Objective Resolution) के बिन्दु :
  • जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर, 1946 को ये प्रस्ताव पेश किए और विधानसभा ने 22 जनवरी, 1947 को इन प्रस्तावों को अपनाया गया था।

इन संकल्पों का सारांश निम्नलिखित है:

  • भारत एक संप्रभु, स्वतंत्र गणराज्य है
  • भारत को एक संघ होना चाहिए जिसमें पूर्व ब्रिटिश भारतीय क्षेत्र, भारतीय राज्य और ब्रिटिश भारत के बाहर के अतिरिक्त क्षेत्र और भारतीय राज्य शामिल हों जो संघ में शामिल होने का विकल्प चुनते हैं।
  • संघ में शामिल क्षेत्र स्वायत्त इकाइयाँ होंगी, जो संघ में निर्दिष्ट या निहित क्षेत्रों को छोड़कर सरकार और प्रशासन की सभी शक्तियों और जिम्मेदारियों का प्रयोग करेंगी।
  • सभी संप्रभु और स्वतंत्र भारत की शक्तियाँ और अधिकार, साथ ही इसका संविधान, लोगों से प्राप्त होना चाहिए
  • सभी भारतीयों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक निष्पक्षता की गारंटी दी जानी चाहिए; स्थिति और अवसर की समानता; कानून के समक्ष समानता; और बुनियादी स्वतंत्रता - अभिव्यक्ति, विश्वास, विश्वास, पूजा, व्यवसाय, संघ और कार्रवाई की - कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अधीन
  • अल्पसंख्यकों, पिछड़े और आदिवासी समुदायों, गरीबों और अन्य वंचित समूहों को अच्छी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए
  • गणतंत्र की क्षेत्रीय अखंडता, साथ ही भूमि, समुद्र और वायु पर इसके संप्रभु अधिकारों को सभ्य देश के न्याय और कानून के अनुसार संरक्षित किया जाना चाहिए
  • देश विश्व शांति की प्रगति और मानवता की भलाई के लिए पूर्ण और स्वेच्छा से योगदान देगा

एक लक्ष्य के साथ संकल्प

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 13 दिसंबर, 1946 को उद्देश्य संकल्प पेश किया, जिसने संविधान के निर्माण के लिए अवधारणा और मार्गदर्शक सिद्धांतों की स्थापना की और अंततः भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आकार लिया। 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

संकल्प के अनुसार, संविधान सभा सबसे पहले भारत को एक स्वतंत्र संप्रभु गणराज्य घोषित करेगी, जिसमें सभी क्षेत्र स्वायत्त रहेंगे और उनके पास अवशिष्ट शक्तियां होंगी; सभी भारतीयों को न्याय, स्थिति की समानता, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, विश्वास, पूजा, व्यवसाय, संघ की स्वतंत्रता और कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अधीन होने की गारंटी दी जाएगी; और अल्पसंख्यकों, पिछड़े और दलित लोगों के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान किए जाएंगे।

प्रस्तावना में सूचीबद्ध उद्देश्य संविधान की मूल संरचना का गठन करते हैं, जिसे संविधान के अनुच्छेद 368 द्वारा प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करके संशोधित नहीं किया जा सकता है। 

संविधान में संशोधन एवं प्रकार:

संविधान सभा के समक्ष अगस्त 2023 तक, 1951 में पहली बार अधिनियमित होने के बाद से भारत के संविधान में 127 संशोधन हुए हैं।

भारत के संविधान में तीन प्रकार के संशोधन हैं जिनमें से दूसरे और तीसरे प्रकार के संशोधन अनुच्छेद 368 द्वारा शासित हैं।

👉🏻 पहले प्रकार के संशोधनों में वे शामिल हैं जिन्हें भारत की संसद के प्रत्येक सदन में "साधारण बहुमत" द्वारा पारित किया जा सकता है।
👉🏻 दूसरे प्रकार के संशोधनों में वे शामिल हैं जो संसद द्वारा प्रत्येक सदन में निर्धारित "विशेष बहुमत" द्वारा प्रभावी किए जा सकते हैं; और
👉🏻 तीसरे प्रकार के संशोधनों में वे शामिल हैं जिनकी आवश्यकता संसद के प्रत्येक सदन में ऐसे "विशेष बहुमत" के अलावा, कम से कम आधे राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन से है।

जैसा कि आपसे वायदा किया गया था कि इस आलेख में हम आपको क्रन्तिकारी विचारक एम.एन. रॉय से भी परिचित कराएंगे जिन्होंने प्रथम बार संविधान सभा गठित करने का सुझाव प्रस्तुत किया था. तो आइये जाने कि

👉🏻 कौन थे मानवेन्द्र नाथ रॉय (एम. एन. रॉय) और क्या है उनका देहरादून कनेक्शन?

(छुपी बात : 1934 में संविधान सभा गठन का विचार प्रदत्त करने वाले एम.एन. राव का था गहराई से रहा देहरादून कनेक्शन।)

मानवेन्द्र नाथ रॉय का असली नाम नरेन्द्र नाथ भट्टाचार्य था। वह वामपंथ से बहुत अत्यधिक प्रभावित हुए और उन्होंने भारत और मैक्सीको में कम्युनिस्ट पार्टी की नींव रखी थी। अपने सार्वजनिक राजनीतिक एवं सामाजिकता के प्रारम्भिक काल में ऐसा कथन किया जाता है कि वह स्वामी विवेकानंदा, स्वामी रामतीर्थ, स्वामी दयानन्द, क्रन्तिकारी विपिन चंद्र पाल एवं विनायक दामोदर सावरकर से अत्यधिक प्रभावित थे। भारत की स्वतंत्रता के लिए उनके भीतर क्रांति की अलख जग चुकी थी परन्तु समाज में वर्ग विभेद को समाप्त करने के लिए उनके विचार अनुसार वामपंथ सबसे उत्तम राजनीतिक मार्ग था। वामपंथ के प्रति उनका कितना गहरा लगाव था यह इस बात से परलक्षित होता है कि उन्होंने ना केवल भारत में बल्कि मैक्सीको में भी कम्युनिस्ट पार्टी का गठन किया था। वामपंथ की विचारधारा के प्रति उनके आकर्षण का यह परिणाम रहा था कि वह तत्कालीन सोवियत गणराज्य के मॉस्को शहर में स्थापित ओरिएंटल यूनिवर्सिटी में 1921 से 1928 के मध्य अध्यक्ष नियुक्त किये गए थे। उन्होंने अपने जिवनकाल में अनेकों आलेख लिखे व कई अखबारों का सम्पादन किया था। उनकी सृजनशीलता का आंकलन इस बात से भली भांति लगाया जा सकता है कि उन्होंने 80 पुस्तकें लिख डाली थी। मार्च 21 1887 को जन्मे एम. एन. रॉय ने देहरादून में एक दो बरस नहीं बल्कि पूरे 16 साल यहाँ पर बिताये थे। मोहिनी रोड देहरादून में उनकी स्मृति में तो बकायदा निवास का नाम व एक स्वयंसेवी संस्था भी संचालित है। ऐसा माना जाता है कि भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति बाद एम. एन. रॉय ने साम्यवाद की अपनी राजनीतिक विचारधारा के स्थान पर सामाजिक क्षेत्र में मानवतावाद की राजनीतिक विचारधारा पर कार्य करना शुभारम्भ किया था। उनके राजनीतिक जीवन में जुगानंतर, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मैक्सीकन कम्युनिस्ट पार्टी एवं रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी की नींव रखना सम्मिलित रहा है। शायद इस कारण से किसी काल में विश्व ख्याति प्राप्त एम. एन. रॉय वामपंथी विचारधारा के समर्थक लोगों से भी दूर होते चले गए व उनमें से अधिकांश ने उन्हें भूला बिसरा दिया। 25 जनवरी 1954 को इस महान विचारक और क्रन्तिकारी का देहरादून में निधन हो गया।

संविधान दिवस पर 'वन हिमालय' के पाठकों एवं प्रत्योगी परीक्षा की तैयारी करने वाले युवाओं हेतु यह विशेष आलेख तैयार करते समय मेरे लिये सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह जानकर हुआ कि प्रथम बार संविधान सभा गठन का विचार देने वाले एम.एन. रॉय जो कि एक अंतराष्ट्रीय व्यक्तित्व बन चुके थे ने अपना अंतिम समय देहरादून में बिताया था। मुझे नहीं पता कि कितने लोग आज इससे भिज्ञ हैँ। मेरे मत में विचारों के धनी एम.एन. रॉय जैसे अंतराष्ट्रीय व्यक्तित्व जिन्होंने दो दो राष्ट्र (भारत और मैक्सीको) के भीतर वामपंथी दलों का गठन किया हो व भारत हेतु संविधान सभा गठन का विचार प्रेषित किया हो, यदि उन्होंने अपना अंतिम समय हिमालय की गोद में बसे नगर देहरादून में बिताया था, तो इस ऐतिहासिक तथ्य को गर्व के साथ देहरादून की अवाम के मध्य उजागर होना चाहिए। यह वह व्यक्तित्व रहा था जिनके लिए भारत सरकार ने उनकी स्मृति व सम्मान में सन 1987 में डाक टिकट जारी कर किया था। - भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास ("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)

भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास
("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)

सम्पर्क सूत्र:- मोबइल 👉🏻 9756201936 अथवा 9412145589
ईमेल :- UKRajyaNirmanSenaniSangh@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

!!लड़ना है भाई, यह तो लम्बी लड़ाई है!!

देवभूमि गढ़वाल कुमाऊँ का इगास पर्व क्यों एकादशी को ही मनाई जाती है?

जानिए किन्हे कहा जाता है फादर ऑफ रेवोलुशनरी आइडियाज।