असीम बलिदान की ऐसी गाथा जो किसी के भी रोंगटे खडे कर देगी।
शीश दिया परन्तु पंथ नहीं बदला - ऐसे थे वीर श्री सिक्ख गुरु!
सिक्ख पंथ में 10वें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिँह जी ने दशम ग्रंथ में 'बिचित्र नाटक' में कहा है :-
तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥ साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥ धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥
उन्होंने जिन सिक्ख गुरु की वीरता में यह संदेश रचा था वह कोई और नहीं बल्कि सिक्ख पंथ में 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के विषय में था।
श्री गुरु तेग बहादुर जी के असीम बलिदान की स्मृति में सनातन धरा भारत की राजधानी में शीश गंज गुरुद्वारा एवं रकाब गंज गुरुद्वारा निर्मित हैँ। आइये जाने क्या था उनका असीम बलिदान।
पंथ परिवर्तन के विरुद्ध उठाई आवाज
भारत में एक लम्बे समय तक मुगल शासन काल चला था। इसमें एक नाम आता है मुगल शासक औरंगजेब का। औरंगजेब की अनेकों अधर्म नीतियों में से एक अधर्म नीति थी कि वह दूसरे पंथ में आस्था रखने वालों को बलपूर्वक इस्लाम स्वीकार कराना चाहता था। इसके लिए उसने हिंसा और क्रूरता की सारी हदें तक पार की थी।
किसी व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह का पंथ परिवर्तन करवाना ऐसा वह और उस जैसे मूर्ख तब करते हैँ जबकि उन्हें धर्म का सही ज्ञान ही नहीं होता है।
श्रीमदभागवद गीता में हिंसाग्रस्त हेतु पर श्री कृष्ण बड़े स्पष्ट शब्दों में निर्दिष्ट करते हुए कथन करते हैँ कि:-
मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः |
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्।।
मूर्खतावश स्वयं अथवा दूसरों का आत्म उत्पीड़न अथवा अन्यों को विनिष्ट करने के उद्देश्य से की गईं तपस्या तामसिक अर्थात निकृष्ट और निचले स्तर की कहलाती है। सार कथन यह है कि मनुष्य धर्म प्रद गुणों से धार्मिक बनता है ना कि आस्था अथवा पंथ परिवर्तन से। मनुष्य को अधर्म मार्ग असत्य, हिंसा, घृणा, द्वेष, भय काम, क्रोध इत्यादि आसुरी एवं तामसिक गुणों को त्यागकर धर्म मार्ग की ओर अर्थात सत्य, अहिंसा, प्रेम, निर्भयी,, भाईचारा-बन्धुत्व, शांति, परोपकार आदि सात्विक गुणों की ओर उन्मुख करना ही यतार्थ में धर्म नित कार्य है। कोई पंथ परिवर्तन नहीं। व्यक्ति किसी भी पंथ का अनुयायी क्यों ना हो परन्तु यदि उसमें धर्म नित गुण निहित नहीं हैँ तो वह अधर्मी ही कहलायेगा।
खैर हम चलें पुनः अपने विषय की ओर। अज्ञान मुगल शासक औरंगजेब की मति भर्मित होने के कारण उसने जो नीति अपनाई उससे उसने पंजाब एवं कश्मीर क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों जो कि अन्य पंथ का अनुसरण करने वाले रहे थे को पंथ परिवर्तन करके इस्लाम पंथ अपनाने हेतु क्रूर अभियान चलाया। इस अधर्म नीति का प्रबल विरोध सिक्ख पंथ में 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी ने किया। क्रूर एवं निर्दयी शासक जिसे धर्म शास्त्र का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं था को लगता था कि व्यक्ति का तलवार के बल पर पंथ बदलवाना ही धर्म है। श्री गुरु तेग बहादुर जी के समक्ष भी उसने यही शर्त रखी थी कि या तो पंथ बदलो अथवा अपना शीश दो। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने शीश देना स्वीकार किया परन्तु पंथ परिवर्तन करना स्वीकार नहीं किया। क्रूर शासक ने वही किया जो वह सबके साथ करता था अर्थात उसका पंथ स्वीकार ना करने वाले का शीश काटना। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने हँसते हँसते जहाँ अपना शीश कटवा दिया वहीं उनके असीम बलिदान की स्मृति में श्री शीशगंज गुरुद्वारा निर्मित है। उनकी समाधि स्थल पर श्री रकाबगंज गुरुद्वारा निर्मित है।
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