असीम बलिदान की ऐसी गाथा जो किसी के भी रोंगटे खडे कर देगी।

 शीश दिया परन्तु पंथ नहीं बदला - ऐसे थे वीर श्री सिक्ख गुरु!

सिक्ख पंथ में 10वें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिँह जी ने दशम ग्रंथ में 'बिचित्र नाटक' में कहा है :-

तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥ साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥ धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥

उन्होंने जिन सिक्ख गुरु की वीरता में यह संदेश रचा था वह कोई और नहीं बल्कि सिक्ख पंथ में 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी के विषय में था।

श्री गुरु तेग बहादुर जी के असीम बलिदान की स्मृति में सनातन धरा भारत की राजधानी में शीश गंज गुरुद्वारा एवं रकाब गंज गुरुद्वारा निर्मित हैँ। आइये जाने क्या था उनका असीम बलिदान।

सिक्ख पंथ में 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी
21 अप्रैल 1621 - 24 नवंबर 1675

पंथ परिवर्तन के विरुद्ध उठाई आवाज

भारत में एक लम्बे समय तक मुगल शासन काल चला था। इसमें एक नाम आता है मुगल शासक औरंगजेब का। औरंगजेब की अनेकों अधर्म नीतियों में से एक अधर्म नीति थी कि वह दूसरे पंथ में आस्था रखने वालों को बलपूर्वक इस्लाम स्वीकार कराना चाहता था। इसके लिए उसने हिंसा और क्रूरता की सारी हदें तक पार की थी।

किसी व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह का पंथ परिवर्तन करवाना ऐसा वह और उस जैसे मूर्ख तब करते हैँ जबकि उन्हें धर्म का सही ज्ञान ही नहीं होता है।

श्रीमदभागवद गीता में हिंसाग्रस्त हेतु पर श्री कृष्ण बड़े स्पष्ट शब्दों में निर्दिष्ट करते हुए कथन करते हैँ कि:-

मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः |

परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्।।

मूर्खतावश स्वयं अथवा दूसरों का आत्म उत्पीड़न अथवा अन्यों को विनिष्ट करने के उद्देश्य से की गईं तपस्या तामसिक अर्थात निकृष्ट और निचले स्तर की कहलाती है। सार कथन यह है कि मनुष्य धर्म प्रद गुणों से धार्मिक बनता है ना कि आस्था अथवा पंथ परिवर्तन से। मनुष्य को अधर्म मार्ग असत्य, हिंसा, घृणा, द्वेष, भय काम, क्रोध इत्यादि आसुरी एवं तामसिक गुणों को त्यागकर धर्म मार्ग की ओर अर्थात सत्य, अहिंसा, प्रेम, निर्भयी,, भाईचारा-बन्धुत्व, शांति, परोपकार आदि सात्विक गुणों की ओर उन्मुख करना ही यतार्थ में धर्म नित कार्य है। कोई पंथ परिवर्तन नहीं। व्यक्ति किसी भी पंथ का अनुयायी क्यों ना हो परन्तु यदि उसमें धर्म नित गुण निहित नहीं हैँ तो वह अधर्मी ही कहलायेगा।

खैर हम चलें पुनः अपने विषय की ओर। अज्ञान मुगल शासक औरंगजेब की मति भर्मित होने के कारण उसने जो नीति अपनाई उससे उसने पंजाब एवं कश्मीर क्षेत्र में निवास करने वाले लोगों जो कि अन्य पंथ का अनुसरण करने वाले रहे थे को पंथ परिवर्तन करके इस्लाम पंथ अपनाने हेतु क्रूर अभियान चलाया। इस अधर्म नीति का प्रबल विरोध सिक्ख पंथ में 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी ने किया। क्रूर एवं निर्दयी शासक जिसे धर्म शास्त्र का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं था को लगता था कि व्यक्ति का तलवार के बल पर पंथ बदलवाना ही धर्म है। श्री गुरु तेग बहादुर जी के समक्ष भी उसने यही शर्त रखी थी कि या तो पंथ बदलो अथवा अपना शीश दो। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने शीश देना स्वीकार किया परन्तु पंथ परिवर्तन करना स्वीकार नहीं किया। क्रूर शासक ने वही किया जो वह सबके साथ करता था अर्थात उसका पंथ स्वीकार ना करने वाले का शीश काटना। श्री गुरु तेग बहादुर जी ने हँसते हँसते जहाँ अपना शीश कटवा दिया वहीं उनके असीम बलिदान की स्मृति में श्री शीशगंज गुरुद्वारा निर्मित है। उनकी समाधि स्थल पर श्री रकाबगंज गुरुद्वारा निर्मित है।

असीम बलिदान की ऐसी गाथा जो किसी के भी रोंगटे खडे कर देगी।

श्री गुरु तेग बहादुर जी के साथ साथ उनके तीन शिष्यों के असीम बलिदान की गाथा के समक्ष बड़े से बड़ा भी शीश नवाये बिना नहीं रह सकता है। श्री गुरु तेग बहादुर जी से पूर्व उनके शिष्यों भाई दयाल दास, भाई माटी दास व भाई सती दास को जिस निर्ममता से सिर्फ इसलिए क्रूरता भरे तरीके से मारा गया कि वह अपना पंथ बदल लें। उन्होंने मृत्यु स्वीकार की परन्तु अपने सिद्धांतों पर नहीं डगमगाये। आइये बांचे उस असीम बलिदान की गाथा को जिसने सिक्ख पंथ के प्रति श्रद्धा भक्ति और गुरु शिष्य परम्परा को सर्वोच्च पायदान पर स्थापित कर दिया।

औरंगजेब के आदेश पर उसके जल्लादों ने श्री गुरु तेग बहादुर जी के तीनों शिष्यों को एक एककर मारा। उन्होंने पहले भाई दयाल दास को उबलते पानी में, फिर भाई माटी दास को आरा से काटकर व भाई सती दास को कपास के कपड़ों में लिपटाकर व उसपर तेल डालकर आग लगाकर मार डाला। तीनों शिष्य अपने गुरु का स्मरण करते हुए बिना भय खाये अपनी देह त्याग गए। अंतोत्गत्वा श्री गुरु तेग बहादुर जी को भी उनके प्रिय शिष्यों की भांति शीश काट दिया गया। उनके व उनके शिष्यों के असीम बलिदान ने सिद्ध कर दिया था कि औरंगजेब की पंथ परिवर्तन की नीति खोखली और त्रुटिपूर्ण थी। यह भी सिद्ध हो गया था कि पंथ परिवर्तन वास्तविक धर्म मार्ग का अनुसरण नहीं है। धर्म तो सदाचार व न्यायप्रदत्त प्रेम व सर्व जीव कल्याण में निहित है।

श्री गुरु तेगबहादुर जी ने जीवन पर्यन्त अनेकों परोपकार व धर्म सम्मत कार्य किये थे। उनकी जयंती तिथि 21 अप्रैल 1621 एवं पुण्यतिथि 24 नवंबर 1675 है। श्री गुरु तेगबहादुर जी की माता का नाम श्रीमती नानकी एवं पिता का नाम श्री हरगोबिंद सिँह जी था। उनके पुत्र का नाम श्री गोबिंद सिँह था जो आगे चलकर सिक्ख पंथ में 10वें गुरु हुए व जिन्होंने मुगलों की क्रूरता से लोहा लेने के लिए'खालसा' की स्थापना की थी।

💐🙏🏻💐🕉️ हरे कृष्ण!

सिक्ख पंथ में 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी की पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन एवं भावभीनी श्रद्धांजलि!🙏🏻

भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास
("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी)
सम्पर्क सूत्र :- 9756201936 अथवा 9412145589

"वृक्ष रोपण करते रहें और प्रकृति के संवर्धन एवं संरक्षण के प्रति क्रियाशील बने रहें।"


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