जन्म दिवस पर हम इठलाते / क्यों न मरण-त्यौहार मनाते / अंतिम यात्रा के अवसर पर / आँसू का अशकुन होता है - अटल बिहारी वाजपेयी
भारत के राजनीती मे लगभग अर्द्ध शताब्दी तक अपनी अमिट छाप छोड गए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी जी 10 बार लोक सभा व 02 बार राज्य सभा सांसद रहे। भारत रत्न और पद्म विभूषण से सम्मानित रहे अटल बिहारी वाजपेयी प्रखर वक्ता और ओजस भरे लेखन की प्रतिभा रखते थे। राष्ट्र के प्रति उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है। विपक्ष मे रहते हुए भी जब आवश्यकता पड़ी तो वह राष्ट्र हित की सुरक्षा हेतु अग्रिम मोर्चे पर खडे मिले। इसका बेमिसाल उदाहरण है जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मे भारत का प्रतिनिधित्व श्रीमती इंदिरा गाँधी के अनुरोध पर सहर्ष स्वीकार किया था।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर मे हुआ था। उन्होंने 16 अगस्त 2018 को अंतिम सांस ली थी। उनके पुण्य तिथि के मौके पर हम उनकी दो कविताओं का पाठ याद कर उनका स्मरण करना चाहते हैँ व उनको भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते हैँ। इन दो कविताओं का शीर्षक है "दूर कहीं कोई रोता है" एवं "मौत से ठन गईं"।
दूर कहीं कोई रोता है।
- अटल बिहारी वाजपेयी -
तन पर पहरा, भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या स्वजन किसी का,
क्रंदन सदा करुण होता है।
जन्म दिवस पर हम इठलाते,
क्यों न मरण-त्यौहार मनाते,
अंतिम यात्रा के अवसर पर,
आँसू का अशकुन होता है।
अंतर रोएँ, आँख न रोएँ,
धुल जाएँगे स्वप्न सँजोए,
छलना भरे विश्व में,
केवल सपना ही सच होता है।
इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली-गली है,
मैं भी रोता आस-पास जब,
कोई कहीं नहीं होता है।
दूर कहीं कोई रोता है।
(स्रोत :पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ (पृष्ठ 32) संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन संस्करण : 2017)
मौत से ठन गई
- अटल बिहारी वाजपेयी -
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िंदगी-सिलसिला, आज-कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी है कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आँधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई,
मौत से ठन गई।
(स्रोत :पुस्तक : मेरी इक्यावन कविताएँ (पृष्ठ 34) संपादक : चंद्रिकाप्रसाद शर्मा रचनाकार : अटल बिहारी वाजपेयी प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन संस्करण : 2017)
युगपुरुष अटल आपको शत शत नमन कोटिश अभिनंदन!
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