माँ तुम सदैव मेरी मनः स्मृति में बनी रहो, यही प्रार्थना करूंगा!
माँ तुम सदैव मेरी मनः स्मृति में बनी रहो, यही प्रार्थना करूंगा!
माँ ! ब्रह्माण्ड का सर्वाधिक खूबसूरत शब्द है. माँ, के उद्बोधन में वह मूर्ति मानसपटल पर उभरती है, जिसने हमें अपने गर्भ में महीनों तक प्रश्रय प्रदान किया. हम धरती पर उसकी ही बदौलत आये. उस महा देवी ने हमारी लालना पालना करी; तब तक, जब तक कि हम अपने पांवों में खड़े हो, चलना न सीख पाए. माँ, के देयता (सर्वस्व प्रदत्त करने वाला) भाव से ही, हमें माँ रुपी 'गऊ' महिमा का बोध विचारित हो आता है. अपनी संतान को दुग्ध स्तनपान कराना, तो सिर्फ माँ का ही चरित्र मात्र है. इसी देयता के भाव में हमे अपनी धरती माँ की पूजयता का भान होता है; जो हमें अन्न, वस्त्र, जल, प्राण वायु और सम्पूर्ण जीवन प्रदान करती है. और माँ उद्बोधन की महिमा ब्रह्म रूप धारित कर, हमें जागृत करती है कि सम्पूर्ण देयता "माँ" ही तो है..और हम पूजने और उद्बोधित करते हैं प्रत्येक देयता शक्ति रूप को..माँ सरस्वती- विद्या देवी, माँ लक्ष्मी-धन देवी, माँ गंगा- जल देवी..और यह अनन्त सागर रूपित हो जाता है. देश, भाषा, आदि सर्व "माँ" रूप में वंदनीय हो उठते हैं.
धन्य हो 'माँ' - तुम सदैव, पल हर पल, मेरे अंतर्मन में वास करती रहो..और मुझे पग पग सिखलाती रहो, ताकि मैं अपनी तुच्छता के मध्य तुम्हारे देयता भाव को गृहण कर सर्व ओर माँ रूपी प्रेम सागर प्रतिपादित कर सकूं.
मातृ दिवस की ढेर सारी सुभकामनाएँ!
आपका अनुज; सुदामा अनुयायी गरीब ब्राह्मण
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