इतिहास के पन्नों से "विदा - 1994 विदा!"


इतिहास के पन्नों से
विदा - 1994 विदा!
बस कुछ ही क्षणों में तुम हमारा अतीत बन जाओगे। उत्तराखंड का संघर्षमयी अतीत, जिसे उत्तराखंड के महान सपूतों ने अपने खून लिखा है।
अपने साथ, तुम बहुत कुछ लिए जा रहे हो 1994, झूठे आश्वासनों का मायाजाल, कि जिसे हम, पिछले 47 सालों से ओढ़ते, बिछाते, पहनते आ रहे थे। तुम्हारे ही काल में हम अन्ततः पूरी तरह जागे और उत्तराखंड, हम शान्तिप्रिय लोग क्रान्तिकारी बन गये।
वक्त की इन्हीं लहरों में हमने सामुहिक संघर्ष के अनेक इम्तहान पास किए। तुम्हारे साथ, हमारे कुछ साथी भी तो छूट रहे हैं, 1994. खटीमा में! मसूरी में! मुजफ्फरनगर में! देहरादून मे!
और 1994, तुम उनकी इन्सानियत के, उनकी बहादुरी के सबसे बड़े गवाह हो।
वे अमर हैं, अब हमारे पूज्य पितृ हैं। वक्त के किसी दौर में हम तफम्हें निहारेंगे 1994, तो हमेशा अपने इन्हीं साथियों को पाएंगे, जिन्दा, आगे बढ़ते हुए। उत्तराखंड की बुनियाद अपने खून से रखते हुए।
1994, तुम उत्तराखंड के दुखों के अन्त की शुरुआत हो। पहले, बहुत पहले, भक्त प्रह्लाद के अत्याचरी पिता हिरण्यकश्यप ने भी प्रयत्न किया था, अपने अंत से बचने का।
अपनी प्रजा की हत्या करने वाला कोई भी तानाशह कब और कहाॅं बच पाया है। वो कि, जिनके साम्राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता था। इतिहास गवाह है, हमारे जैसी आम जनता के सतत संघर्षों से इतिहास में दफन कर दिए गए।
आज जिन्होंने, हमारी लोकतांत्रिक माॅंगों को कुचलने के लिए लोकतंत्र की हत्या कर डाली, उनका यह खूनी तंत्र भी जनशक्ति द्वारा ढहा दिया जाएगा।
विदा 1994, हिमालय के प्रति किए जा रहे सौतेलेपन के खिलाफ, पृथक उत्तराखंड राज्य प्राप्ति के संघर्षों में, हिमालय द्वारा अपने ही खून से लिखें गये जनसंकल्प के रुप में हमारा गौरवमयी इतिहास बनो।
आने वाली पीढ़ियाॅं इस कालखण्ड के साथ अपने को सम्बद्ध कर गौरवान्वित होंगी।

(उपरोक्त शपथ/संकल्प एवम् वचन, उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में रामपुर तिराहा (अब चैराहा), मुजफ्फरनगर में घटित 02 अक्टूबर 1994 के गोलीकाॅंड में गोली लगने से घायल सेनानी मनोज ध्यानी द्वारा 31 दिसम्बर 1994 की अर्द्ध-रात्रि को शहीद स्मारक, कचहरी परिसर, देहरादून (उत्तराखंड) में राज्य आंदोलनकारियों को दिलाई गई थी।)
स्रोत/साभारः- चिट्ठी अंक 22/1995 से उद्धित।

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