उत्तराखंड आंदोलन के ऐतिहासिक पल व अभिभाषण!

!! इतिहास के पन्नों से !!


संघर्ष और संभावनाओं से ओत-प्रोत 1995, स्वागत!
तुम्हारा अभिनंदन!
हम जानते हैं नववर्ष कि अब हमें नयी चुनौतियाॅं मिलेंगी। पर हमें कहाॅं रोक पाएंगी। हिमालय की नदियाॅं वापस नहीं लौटती। हिमालय के पुत्रोंका यह कारवाॅं भी मंजिल तक पहुॅंच कर ही दम लेगा, और हमारी मंजिल उत्तराखंड राज्य ही नहीं बल्कि जनता का उत्तराखंड राज्य है। वहाॅं तक पहुॅंचने के बाद भी हमें सदैव सजग रहना होगा। हम आने वाली नयी सुबह के पेट पर खरपतवार उगने नहीं देंगे। आओ, नववर्ष! आओ। समय के अनन्त प्रवाह के एक सूक्ष्म कालखण्ड, तुम्हारे साथ ही आ रही नवीन चुनौतियों से निपटने को हम आतुर हैं।
हाॅं, इन्हीं चुनौतियों को ध्वस्त करतेहुए हम भविष्य के गर्भ में पल रहे उत्तराखंड को वर्तमान बनायेंगे।

लड़ रहे हैं, इसलिए कि प्यार जग में जी सके।
आदमी का खून, कोई आदमी न पी सके।।

जय भारत! जय उत्तराखंड!

(उपरोक्त शपथ/संकल्प एवम् वचन, उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में रामपुर तिराहा (अब चैराहा), मुजफ्फरनगर में घटित 02 अक्टूबर 1994 के गोलीकाॅंड में गोली लगने से घायल सेनानी मनोज ध्यानी द्वारा 01 जनवरी 1995 की अर्द्ध-रात्रि नववर्ष 1995 की नूतन बेला पर शहीद स्मारक, कचहरी परिसर, देहरादून (उत्तराखंड) में राज्य आंदोलनकारियों को दिलाई गई थी।)
स्रोत/साभारः- चिट्ठी अंक 22/1995 से उद्धित।

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