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सिलक्यारा की त्रासदी में छुपी है हिमालय की वेदना!

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'विश्व पहाड़ दिवस' के सुअवसर पर प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम एक खुली पाती!   लब्ध प्रतिष्ठ सेवा में : श्रीमान पुष्कर सिँह धामी जी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड प्रदेश, देहरादून, उत्तराखंड।               दिनांक: सोमवार, 11 दिसंवर 2023 विषय : सिलक्यारा में छुपी है समूचे हिमालय की वेदना। मेरे जनप्रिय शिष्ट माननीय मुख्यमंत्री महोद य : उत्तरकाशी जनपद के सिलक्यारा में धवस्त हुई सुरंग में फंसे जिन 41 श्रर्मिंकों की प्राण रक्षा उत्तराखंड सरकार आपके कुशल नेतृत्व में कर पाई है उस हेतु आपको एवं उस कार्य को सफल निर्मित करने वाले प्रत्येक हाथ एवं विचार को  'विश्व पहाड़ दिवस' के सुअवसर पर 💐 हृदय की गहराई से बधाई एवं सादर शुभकामनायें! 💐 माननीय , सिलक्यारा (उत्तरकाशी, उत्तराखंड) में 41 श्रमिकों की प्राण रक्षा व सकुशल वापसी हेतु जब पूर्ण प्रयोजन संचालित किया जा रहा था तो प्रत्येक क्षण मैं परमपिता परमेश्वर एवं माँ भगवती से यही प्रार्थना करता रहा था कि 'सिलक्यारा का मनोरथ' सफल हो जाए और सभी 41 श्रमिक भाई जीवन दान प्राप्त करके अपने अपने प्रिय परिजनों के बीच ...

आज एक परिचय 'सत्यशोधक समाज' की संकल्पना करने वाले 'महात्मा' ज्योति राव फुले से। (प्रथम बार ज्योतिषीय गणना के साथ)

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आज एक परिचय 'सत्यशोधक समाज' की संकल्पना करने वाले 'महात्मा' ज्योति राव फुले से। (प्रथम बार ज्योतिषीय पंचांग गणना के साथ) ज्योति राव फुले (1827-1890) पर भारत सरकार द्वारा   सन 1977 में   जारी डाक टिकट  सनातन धरा भारत में एक से बढ़कर एक महात्मा जन्मे हैँ जिन्होंने सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में ऐसी क्रांति व बदलाव की बयार बहाई कि उसने समाज के देखने के दृष्टिकोण व स्वरूप को बदलकर रख दिया। इसी श्रेणी में बड़े सम्मान से एक नाम ज्योति बा फुले जी का भी लिया जाता है। आज के इस ब्लॉगपोस्ट में आपसे उन्ही के विषयगत यह संवाद रच रहा हूँ। ज्योति बा फुले नाम से प्रसिद्धि पाने वाले इस महान समाज सुधारक का असली नाम 'ज्योति राव बा फुले था. उनका जन्म 11 अप्रैल 1827 को माता चिमनाबाई और पिता गोविंदराज के यहाँ हुआ था। ज्योति बा फुले जी की पंचांग ज्योतिष गणना। अंग्रेजी कैलेंडर 11 अप्रैल 1827 को जन्मे ज्योति बा फुले का जन्म अत्यंत शुभ ज्योतिष गणना में हुआ था। चैत्र पूर्णिमा शाक संवत 1749 एवं विक्रमी संवत 1884 को हस्ता नक्षत्र में हुआ था। उनका विवाह अल्प आयु मात्र जब वह 12 बरस के थे...

कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, परन्तु क्यों?

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कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, परन्तु क्यों? 'वन हिमालय' के सर्व पाठकों और मित्रों को सादर नमस्कार और कार्तिक पूर्णिमा /त्रिपुरी पूर्णिमा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें! आज सनातन धारा से निकली प्रेम -भाईचारा, साहस और सेवा से भरे पंथ सिक्ख पंथ के विचारक एवं संस्थापक गुरु नानक जी की जयंती भी है। सभी सिक्ख भाईयों - बहिनों और सिक्ख पंथ के अनुयाईयों को भी सादर वंदन और श्री गुरु नानक जयंती की हार्दिक शुभकामनायें! दोस्तों : तो अब आते हैँ मूल विषय पर। आज इस ब्लॉग में मैं आपके साथ एक नई सनातन की जानकारी के साथ उपस्थित हुआ हूँ। और वह यह है कि ' कार्तिक पूर्णिमा' को ' त्रिपुरी पूर्णिमा' भी क्यों पुकारा जाता है। आज के इस मेरे ब्लॉगपोस्ट से आप तीन विषयों से अवगत हो जायेंगे। कार्तिक पूर्णिमा /त्रिपुरी पूर्णिमा का महत्व। कार्तिक पूर्णिमा /त्रिपुरी पूर्णिमा पर क्या करें और क्या नहीं करें। कार्तिक पूर्णिमा /त्रिपुरी पूर्णिमा के अचूक मंत्र और दोहे। तो आइये बिना समय गंवाये इसपर दृष्टि डालते हैँ। परन्तु सबसे पहले यह जान लें कि कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पू...

छुपी बात : 1934 में संविधान सभा गठन का विचार प्रदत्त करने वाले एम.एन. राव का था एक गहरा देहरादून कनेक्शन।

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भारत की संविधान सभा की एक बैठक  भारत की संविधान सभा से जुड़े रोचक तथ्य। सन 1934 में सर्वप्रथम एम.एन. रॉय द्वारा संविधान सभा (Constituent Assembly) गठित करने का सुझाव रखा गया था। श्री एम.एन. रॉय के विचार को सन 1935 में कांग्रेस पार्टी ने स्वीकारते हुए इसके हेतु विधिवत रुप में मांग उठाई। ब्रितानी सरकार ने इस मांग को स्वीकार करते हुए 1940 के अगस्त माह में प्रस्ताव पेश किया था। सन 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत 'संविधान सभा' गठन हेतु चुनाव कराए गए। एकल मत द्वारा 'संविधान सभा' के सदस्य चुने गए जिनका कार्य था कि वह स्वतंत्र भारत हेतु संविधान का ड्राफ्ट तैयार करें। संविधान सभा द्वारा स्वतंत्र भारत हेतु संविधान तैयार करने हेतु कुल 389 सदस्य चुन लिए गए थे। पाकिस्तान के गठन के उपरांत संविधान सभा में कुल 289 सदस्य ही रह गए थे। इनमें से 229 सदस्य ब्रितानी सरकार के अंतर्गत प्रांतों की असेंबली से चुनकर आये हुए थे एवं 70 सदस्य द्वारा मनोनीत किये गए थे। डॉ सचिदानंद सिन्हा इसके प्रथम अंतरिम अध्यक्ष (Adhoc President) रहे थे। डॉ राजेंद्र प्रसाद जब अध्यक्ष चुन लिए गए तो वह इसके स्था...

मिराबल बहिनों की अमर कहानी: संयुक्त राष्ट्र भी जिनको करता है सलाम!

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तितलियों के नाम से प्रख्यात मिराबल बहिनों इतिहास की अमर कहानी। क्या आप इस तथ्य से परिचित हैँ कि संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) ने मिराबल बहिनों की स्मृति में प्रत्येक 25 नवंबर को अंतराष्ट्रीय महिला हिंसा निरोधक दिवस घोषित किया हुआ है। प्रत्येक वर्ष 25 नवंबर को इसे "ऑरेंज डे" (Orange Day) के साथ वार्षिक थीम के साथ हैशटैग करके मनाया जाता है। इस दिवस पर संयुक्त राष्ट्र संघ महिला हिंसा के विरुद्ध प्रत्येक वर्ष भांति भांति प्रकार के सृजनात्मक अभियान रचता है जैसे कि महिला विरुद्ध हिंसा रोकने के लिए एक होने के लिए 'Orange Your Neighborhood' अभियान। इसे किसी एक विशेष थीम के साथ 16 दिन तक 'मानवाधिकार दिवस' जो कि 10 दिसम्बर को मनाया जाता है की तिथि तक चलाया जाता है। इस आलेख में हम आगे जानेंगे कि संयुक्त राष्ट्र के पिछले वर्षो में महिला हिंसा निरोधक अभियानों की क्या थीम रहीं थी एवं इस वर्ष की थीम क्या है, परन्तु उससे पूर्व उन तीन दृढ साहसी मिराबल बहिनों के इतिहास से परिचित हो जाएं जिनकी स्मृति में संयुक्त राष्ट्र संघ ने महिला हिंसा को रोकने हेतु एक दृढ अभियान रच डा...

शौर्य और पराक्रम का नाम है 'लाचित बोरफुकन'।

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एनडीए से सर्वश्रेष्ठ पासिंग आउट कैडेट को 'लाचित बोरफुकन गोल्ड मेडल' से सम्मानित किया जाता है। क्या आप जानते हैं इसका इतिहास और क्या है इसका संबंध 24 नवंबर से? यदि नहीं, तो कृपया इसे अभी पढ़ें लाचित बोरफुकन (24 नवंबर 1622 - 25 अप्रैल 1672) एक अहोम बोरफुकन थे , जिन्हें मुख्य रूप से अहोम सेना की कमान संभालने और सरायघाट (1671) की लड़ाई में जीत के लिए जाना जाता है, जिसने रामसिंह प्रथम की कमान के तहत अत्यधिक श्रेष्ठ मुगल सेना के आक्रमण को विफल कर दिया था। लगभग एक साल बाद अप्रैल 1672 में उनकी मृत्यु हो गई। शौर्य और पराक्रम से संबद्ध है 'लाचित दिवस'। लाचित दिवस असम राज्य में एक क्षेत्रीय अवकाश है जिसे हर साल 24 नवंबर को मनाया जाता है। लाचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर 1622 को चराइदेव में हुआ था और यह सरायघाट की लड़ाई में अपनी सैन्य खुफिया के लिए जाना जाता है। छाया चित्र :- उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर सैन्य पुलिस कर्मियों की परेड निरीक्षण करती भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू। सरायघाट की लड़ाई राम सिंह के नेतृत्व वाली मुगल सेना और लाचित बोरफुकान के नेतृत्व वाली अहोम सेना के बी...

असीम बलिदान की ऐसी गाथा जो किसी के भी रोंगटे खडे कर देगी।

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 शीश दिया परन्तु पंथ नहीं बदला - ऐसे थे वीर श्री सिक्ख गुरु! सिक्ख पंथ में 10वें गुरु श्री गुरु गोविन्द सिँह जी ने दशम ग्रंथ में ' बिचित्र नाटक'  में कहा है :- तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥  साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥  धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ उन्होंने जिन सिक्ख गुरु की वीरता में यह संदेश रचा था वह कोई और नहीं बल्कि  सिक्ख पंथ में 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी  के विषय में था। श्री गुरु तेग बहादुर जी के असीम बलिदान की स्मृति में सनातन धरा भारत की राजधानी में शीश गंज गुरुद्वारा एवं रकाब गंज गुरुद्वारा निर्मित हैँ। आइये जाने क्या था उनका असीम बलिदान। सिक्ख पंथ में 9वें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी 21 अप्रैल 1621 - 24 नवंबर 1675 पंथ परिवर्तन के विरुद्ध उठाई आवाज भारत में एक लम्बे समय तक मुगल शासन काल चला था। इसमें एक नाम आता है मुगल शासक औरंगजेब का। औरंगजेब की अनेकों अधर्म नीतियों में से एक अधर्म नीति थी कि वह दूसरे पंथ में आस्था रखने वालों को बलपूर्वक इस्लाम स्वीकार कराना चाहता था। इसके लिए ...