क्या मैं एक मरते शहर का गवाह हूँ? : एक खुली पाती मेयर साहब के नाम!

क्या मैं एक मरते शहर का गवाह हूँ?

देहरादून के मेयर श्री विनोद चमोली समेत समूची उत्तराखंड सरकार के नाम सन 2017 मे "सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी द्वारा देहरादून नगर की पर्यावरणीय एवं परिस्थितिकी चिंताओं को लेकर एक खुली पाति!
परम श्रेष्ठ देहरादून नगर के प्रथम नागरिक महोदय,
हमारे दिल अजीज, नगर मेयर साहब, श्री श्री विनोद चमोली जी, और साथ में समूची प्रदेश सरकार!
सर्वप्रथम तो मैं अपनी इस धृष्टता पर आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ, कि आपको देहरादून नगर के ऐतिहासिक स्थल और वस्तुत: पूरे नगर (देहरादून) की बदहाल मरणासन्न स्थिति से अवगत कराने हेतु, मैं आपकी ‘कुम्भकरणी नींद’ में खलल डाल रहा हूँ.
मेरा मानना है कि यह पाती या तो नगर के चहुंमुखी विकास का द्वार निर्मित करेगी अथवा आप अपनी कुर्सी से चिपके साहबान की कृपा से, हम सब नगर वासी बस यही गुनगुनाते रह जायेंगे कि ‘क्या मैं एक मरते शहर का गवाह हूँ?’
देहरादून के प्रसिद्ध गाँधी पार्क मे राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि अर्पित करते भक्तानुरागी मुकुंद कृष्ण दास ("सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी) एवं अन्य सभ्राँत नागरिकगण)

मैं आपको बताना चाहता हूँ कि 05 जून 2017 को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर नगर के जाने माने सन्घठनों, जिनमें संयुक्त नागरिक सन्घठन, देहरादून, वेस्ट वारिओर्स (Waste Warriors), मैड (MAD), अपना परिवार (APNA PARIWAR), स्वतंत्रता संग्राम उत्तराधिकारी सन्घठन (Freedom Fighters Legacy Holders Association), समाधान (SAMADHAN), पूर्व सैनिक लीग (Ex Serviceman League), दून सिटीजन वेलफेयर एसोसिएशन (Doon Citizen Welfare Association), अखिल भारतीय उपभोक्ता समिति (All India Consumers Society), सब की सहेली (Sab Ki Saheli), उत्तराखंड राज्य निर्माण सेनानी संघ (पंजीकृत) (Uttarakhand State Formation Activists Organisation), होप (HOPE), प्रगतिशील क्लब (Pragatisheel Club), समता मंच (Samta Manch), आरटीआई लोक सेवा- वृक्षाबंधन अभियान (RTI Lok Sewa-Vrikshabandhan), आदि सम्मिलित थे; उन सबके द्वारा घंटाघर की सफाई और घंटाघर से गाँधी पार्क तक ‘पर्यावरण जन जागरूकता रैली’ का कार्यक्रम बना. प्रात: ही इन प्रबुद्द सन्घठन से जुड़े पदाधिकारियों और सदस्यों के साथ, मैं भी घंटाघर पर एकत्रित हो गया. मेरा अनुमान था कि यह कार्यक्रम प्रतीकात्मक अधिक रहेगा, क्यूंकि मुझे लग रहा था कि देहरादून की हृदय स्थली होने के कारण घंटाघर स्वत: ही साफ़ सुथरा रहता होगा. ऐसा सोचने के पीछे मेरा बड़ा कारण भी था. घंटाघर पर सदैव राजनितिक फोकस बना ही रहता है. घंटाघर के आस पास देहरादून नगर का मुख्य डाकघर है, तो साथ में पंजाब नेशनल बैंक, इलाहबाद बैंक, ओरिएण्टल बैंक जैसी प्रमुख शाखाएं भी आस पास ही हैं. सम्विधान निर्माता भीमराव आंबेडकर जी एवं उत्तराखंड के गाँधी स्व० इन्द्रमणि बडोनी जी के स्मृति मुर्तिस्थल भी समीप में ही स्थित हैं. और वहीं एक ओर सरदार वल्लभ भाई पटेल उद्द्यान भी स्थापित है. जाहिर है, इतना कुछ समेटे नगर के केंद्र की सफाई व्यवस्था स्वत: ही नगर प्रमुख (आप मेयर) के संज्ञान में रहती होगी; और वहां की साफ़-सफाई व्यवस्था चाक-चौबन्द तो होगी ही, ऐसा मैं सोचता था. इस सबके अतरिक्त मेरा सोचना यह भी था कि, कम से कम उस स्थान पर जहाँ पूरा शहर प्रतिदिन अपना जमावड़ा बनाता हो, वहां से गुजरता हो, जहां आये दिन पर्वों पर घंटाघर को सजाया जाता हो, वहां तो स्वभाविक ही रोजाना झाड़ू इत्यादि तो लगती ही होगी. इस कारण से मुझे लग रहा था कि घंटाघर की सफाई हमारे कार्यक्रम में शायद खाना पूर्ति और प्रतीकात्मक अधिक होने वाली थी. हाँ,वहां से गाँधी पार्क की ओर तो हमें खासी मशक्त करनी थी, यह मेरे जेहन में जरूर था. ऐसे में सर्व भागीदारी करने वाले सर्व सन्घठन के द्वारा की जानी वाली ‘पर्यावरण जागरूकता मार्च’ के लिए घंटाघर जरूर सर्वोपयुक्त स्थान था. परन्तु वास्तविकता से दो चार होने पर मुझे लगा कि अब बिना सीधे सम्वाद के बात नहीं बन पायेगी.
मुझे आपको अवगत कराना है कि जैसे ही घंटाघर के भीतर हम दाखिल हुए, वहां की जर्जर हालत ने बेहद पीड़ादायक अहसास मुझे दिया. जगह जगह पड़ी पॉलिथीन, प्लास्टिक, बोरियां, टूटी हुई रैलिंग्स, जीर्ण-शीर्ण अवस्था में फव्वारा, उसके भीतर ईंट, गारे, पत्थर, प्लास्टिक के मुड़े तुड़े बैनर, पॉलिथीन. और ऊपर से उसमें रुका हुआ, सडान्द मारता पानी -(डेंगू/मलेरिया) जैसी घातक बिमारियों को पैदा  करने वाले मच्छरों के लिए बेहद महफूज स्थान. यह तो हुई घंटाघर की सफाई स्थिति का चित्रण; परन्तु जब अपने राष्ट्रीय आज़ादी के वीर स्वतन्त्रता सेनानियों के स्मारक की पट्टिका पर नजर डाली, तो वह ऐसा था कि उसमें लिखे नामों को पढ़ पाना तक नामुमकिन है. काले रंग के पत्थर की पट्टिका में खुदे नाम भी पत्थर की भांति ही काले पड़ चुके हैं. घंटाघर के भीतर का आलम यह है कि वहां न तो पौधे रोपित हैं और न ही घास लगाई गई है. बल्कि चारों ओर ‘गाजर घास’ पसरी पड़ी है।
वहां के बदहाल हालत के बीच, हमने काफी मात्रा में गाजर घास को उखाड़ा, वहां पड़े कूड़ा-करकट, पॉलिथीन और प्लास्टिक कचरे को काले बैग्स में भरा,और नगर निगम की ही गाडी मंगवाकर उसमें भिजवा दिया. कार्यक्रम की सभी औपचारिकतायें मार्च, सफाई कार्यक्रम आदि पूरे कर, आज घर में पहुंच मैंने अपनी कलम उठाई तो मेरे जेहन में खिंची घंटाघर की दुर्दशा की तस्वीर, जस की तस, आपके व सरकार के साथ, सबके सामने, उखेरने का मन हुआ. यूं तो कई मर्तबा पहले भी ऐसा लगता रहा है, कि मैं देहरादून को मरते हुए सा देख रहा हूँ. और मरते हुए नगर का प्रत्यक्षदर्शी बन, सिर्फ मौन धारित असहाय सा खड़ा हूँ. विमर्श में जहाँ खड़े हो जाईये, देहरादून नगर के अनेकों प्रबुद्ध, भी यही धारणा मन में पाले हुए हैं, कि ‘देहरादून मर रहा है’.
यह पाती, उस विमर्श को रचने हेतु है, कि आखिर हमारे हुक्मरान (आप सत्तासीन जिनपर हमने विश्वास व्यक्त किया हुआ है) कब जागेंगे? और कब तक, हम देहरादून नगरवासी, अपनी धरोहर को खण्डहर बनते देखते रहेंगे? आपको बताना चाहिए, कि आखिर आप देहरादून की आभा को लौटने के लिए कोई कदम क्यूँ नहीं उठा रहे हैं? हम नगर के लोग, कब तक अपने स्मारकों कि जर्जर होती स्थिति को सम्भालने हेतु आपसे अपेक्षा रखें? हम लोग, कब तक अपनी नदियों को घंटाघर की ही भांति, कूड़े करकट का ढेर बनने पर अपनी हथेलियों को भिंची मुट्ठियाँ बनने से रोके रहें? आप, यह क्यूँ भूल रहे हैं, कि जनता ने आपको कुछ ताकत प्रदान कर इस लायक बनाया है, कि आप देहरादून नगर के लिए इतिहास रच सकें? इस नगर के लिए बेहतर कर सकें. क्या आप, यह सब यह भूल गये हैं कि यह वही देहरादून है, जिसने उत्तराखंड आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान किया. यह वही देहरादून है,जहां अंग्रेज हुक्मरानों ने रेलवे स्टाफ कॉलेज बनाने की सोची थी और बाद में वहां राष्ट्र हेतु प्रतिष्ठित इंडियन मिलिट्री अकादमी (Indian Military Academy) संस्थान निर्मित कर दिया. क्या यह सिर्फ अंग्रेजों का ही काम था कि फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (Forest Research Institute) जैसे प्रतिष्ठित संस्थान, वह यहाँ स्थापित करते. यह वही देहरादून है, जहां अंग्रेजों तक को भी लगा था कि भले ही राजधानी कोलकता से दिल्ली स्थानांतरित कर दी जाये, परन्तु रणनीतिक क्षेत्र के सबसे अहम संस्थान सर्वे ऑफ इंडिया (Survey of India) का मुख्यालय तो देहरादून में ही स्थापित किया जाये. यह वही देहरादून है, जहाँ नव रत्नों में शुमार ओ.एन.जी.सी. (ONGC) का मुख्यालय, बड़ी समझ के बाद विकसित किया गया था. इस देहरादून के बारे में प्रचलित है, कि साक्षात भोलेनाथ टपकेश्वर में अपने भक्त (अश्वथामा) को दर्शन देने प्रकट हो आये थे. इसी देहरादून के बारे में कहा जाता है, कि यहाँ गुरु द्रोणाचार्य अपने शिष्यों को अस्त्र शस्त्र की विद्या विधि सिखाया करते थे. आज लोगों को भले ही आश्चर्य हो उठेगा कि, कभी देहरादून में चार हजार पांच सौ 4,500 से अधिक टी स्टेट (Tea Estate) हुआ करती थीं. ईस्ट कैनाल (East Canal) (र्तमान में जनरल महादेव सिंह रोड के नीचे)और वेस्ट कैनाल (West Canal) (वर्तमान में ई.सी अथवा स्व० राजीव गाँधी मार्ग के नीचे), बहने वाली नहरों की बदौलत,  देहरादून में लहलहाती बासमती की खेती, विश्व की सर्वोत्तम किस्म की मटर की खेती विश्विख्यात थी, परन्तु आज जो स्वाहा हो चुकी हैं. देहरादून के लहलहाते लीची, खुमानी, आम और अमरुद के बगान जमींदोज हो गये हैं. गर्मियों में मात्र दो-तीन दिन की ही गर्मी पर पानी बरसाने वाला देहरादून, अब तपता-जलता देहरादून बन गया है. देहरादून घाटी में बहने वाली सभी नदियाँ, अब बड़े नाले में तब्दील है. रिस्पना नदी, बिंदाल और सुषवा नदी, सब कूड़े के ढेर से अटी पड़ी हैं.
 
आखिर इस सबका जिम्मेदार कौन है, आप जनता को जवाब दें?
आप कर्णधारों की ‘नगर नियोजन और प्रबन्धन’ की महानता पर बोलूँ, तो
  • विश्व स्वास्थ्य सन्घठन (World Health Organisation) की गणना जिसमें 103 देशों के 3000 शहरों पर अध्ययन किया गया, में हमारे नगर देहरादून को 31वे सबसे अधिक प्रदूषित नगर करार दिया गया है;
  • स्वच्छ भारत के तहत कराए गये राष्ट्रीय सर्वे में जिसमें 476 शहर सम्मिलित किये गये, उनमें हमारा देहरादून 360 वें स्थान पर सिसक रहा है. यानी कि, हम गन्दगी का अम्बार बन चुके हैं; और
  • स्वच्छता की कसौटी पर, देश के 29 राज्यों की राजधानियों की गिनती में, हमारा देहरादून 26 वें स्थान पर खड़ा हैं.
 देहरादून नगर का एक भी हिस्सा जाम-विहीन (Free form Traffic Congestion) नहीं है. आपके पास ऐसा कोई ब्लू प्रिंट (Blue Print) भी नहीं दिखाई जान पड़ता है, जिससे आप इस शहर के नगरवासियों को यह आश्वस्त कर सकें, कि देहरादून को उसके बेहतर स्वरुप की ओर कैसे लौटाया जाये. इस नक्कारापन के कारण, आज देहरादून में हम पढ़े लिखे नागरिक, अभिजात्य वर्ग (Elite Class), सब निकृष्ट सिद्ध हो रहे हैं. मुझे आपको याद दिलाना है, कि कितने संघर्ष से भारत संघ के भीतर, हमने उत्तराखंड प्रदेश को सृजित किया; कहने को प्रति व्यक्ति आय में अग्रणी, परन्तु धरातल में हम भारत के 370वें स्थान पर पिछड़े हुए नगरवासी हैं. आपको शायद यह लग रहा है, कि जनता का क्या है, ख़ामोशी से देखती रहेगी. मैं आपको अवगत करना चाहता हूँ, कि अगर यह सब यूं ही चलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब देहरादून पूरी तरह से मर चुका होगा. तो क्या अंतत:, मैं यह मान ही लूं, कि मैं एक मरते शहर का गवाह हूँ? 

इस ‘पाति’ में बयान हालात के बाद भी यदि आपको कुम्भकर्णी नींद में ही रहना पसंद है, तो देहरादून नगर की जनता से अब अनुरोध है:-

“उठना ही होगा; “बोलना ही होगा; लड़ना ही होगा; परिणाम चाहे कुछ भी क्यूँ न आये, परन्तु अपनी इस कर्म भूमि को बचाने की खातिर, तो आगे आना ही होगा.
सर्व देहरादून नगर के भाईयों और बहिनों,
देहरादून नगर के सम्भ्रांत नागरिकों की वेदना को इस ‘खुली पाती’ के द्वारा उखेरने का छोटा सा प्रयास किया गया है. उम्मीद करनी चाहिए कि नगर की तंत्रिका अपनी जिम्मेदारी वहन हेतु, कम से कम, अब तो सक्रिय हो जाएगी. परन्तु यदि ऐसा नहीं होता है, तो ‘सत्ता की ख़ामोशी और उपेक्षा से उत्कंठित और इस जीर्ण शीर्ण प्रदत्त व्यवस्था हम देहरादून वासी कब जगेंगे? हमें स्वयम आगे आना होगा. मेरे मत में प्रत्येक जीव को अंतिम सांस तक हार नहीं माननी चाहिए. और, मरते देहरादून की विकराल हो चली समस्या के निदान हेतु, एक नवीन प्रयास रचना चाहिए. देहरादून की जनता से विनती है:-“बहुत हो गया,अब बाहर निकलिए. गलत को गलत कहना प्रारम्भ करिये. घर, सडक, चौराहे से लेकर इस भूमि के प्रत्येक कोने तक में माँ-बहिनों का सम्मान, बुजुर्गों की देखभाल, भ्रस्टाचार पर सामूहिक एकता, पर्यावरण के प्रति सर्वाधिक ध्यान, इन सब पर मुखर हो जाइये. सत्ता केन्द्रों की ओर मुहं बाए खड़े रहना बंद कर दीजिये. एक मुट्ठी बन जाईये; और हर नेता,अधिकारी को सख्त हिदायत दीजिये कि, अब और नहीं..we want results.”
जय भारत! जय उत्तराखंड!

आपका आन्दोलनकारी भाई
"सैनिक शिरोमणि" मनोज ध्यानी, देहरादून (उत्तराखंड)
E-mail:- onehimalaya@outlook.कॉम
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